Sunday, November 30, 2008
उनकी भावना को सलाम!
आतंकियों के सामने लोहा लेने के लिए जाबाजों की आवश्यकता होती है और उनकी शहादत का शौक व्यक्त करने के लिये आकाओं से पहले उनके कुत्ते सुंध कर जाते हैं अर्थात शहीद जाबांज के घर परभी हमारे राजनेता अपने कुत्तों को भेजकर जब तक आश्वसत नहीं हो जाते तब तक नहीं आते। उनकी जान की कीमत हमें तब समझ में आती है और उन जाबांजों की शहादत का मोल भी हमें तब पता चलता है कि सियासत की इस बिसात में हमारे ये शेर सिर्फ मोहरे ही होते हैं जिनको राजनीति स्वयं अपने आतंक के प्यादों से मरवाती है तथा फिर शौक व्यक्त करने के लिए पहले अपने कुत्तों को भिजवाती है। बहादुर बेटे का बाप तो बहादुर ही होगा और उसने अपने बेटे की वीरता का सम्मान अपने घर के दरवाजे को राज्य के मुख्यमंत्री के लिए बंद करके रख लिया। उसकी यह बहादुरी न सिर्फ वर्तमान राजनीति व उनके आकाओं के मुंह पर तमाचा है वरन यह संदेश भी है कि उनके कलेजे के टुकड़े अपनी जान इस देश की माटी के लिये ही दे सकते हैं न कि राजनीति की शतरंज में मोहरा बनाने के लिए। उधर शहीद हेमंत करकरे की पत्नी ने मोदी सरकार द्वारा दिये गये एक करोड़ का चैक अस्वीकार करके यह दिखा दिया है कि शहादत की कीमत न तो रुपयों की गठरी से तोली जा सकती है न ही उसका बखान शहीद के परिवार के जख्मों को भर सकता है। जब तक राजनीति अपने स्वार्थ के लिए देशहित को अनदेखा करना बंद नहीं करेगी तब तक जाबाजों की बलि यूं ही लगती रहेगी। शहीद परिवारों का यह विरोध अगर जन चेतना का रुपक बनकर राजनेताओं को उनकी कुर्सियों से उठाने लग जायेगा तब ये जमात यह सोचेगी कि जनता की ताकत का जायका कैसा है?अगर हमारे दिल में हमारे उन जाबांजों के प्रति सम्मान है तो हम अपने मोहल्ले में राजनेताओं के खिलाफ हल्ला बोले और उन्हें समझा दे कि आगे क्या हो सकता है। जनता क्या कर सकती है। जब हर गली-मौहल्ले में राजनेताओं को घेरा जाने लगेगा तब राजनीति का समूचा तंत्र चाहे सरकार हो या विपक्ष हो वो एक दिन जनता के जाल में होंगे और फिर वो ही होगा जो जनता चाहेगी। अर्थात अब प्यादे हमारे नेता होंगे और चाल चलने वाली जनता होगी। अब तक की बेशर्म राजनीति को शायद यह कड़ी सजा होगी। शहीद परिवारों की भावना के साथ इस देश के ११२ करोड़ के लोगों की भावना को जोड़ते हुए राजनीति के प्रति उनके इस विरोध को सलाम करता हूं। संजय सनम
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