Thursday, November 20, 2008

मंदी की वजह क्या है ?

अगर एक शब्द में जवाब देना हो तो कहा जाएगा ''तरलता '' में कमी और हम मनीमार्केट में दिख रही तंगी को इस मंदी की वजह मान लेते है । दरअसल अर्थ जगत में आई इस मंदी की उपरी वजह तो मनी मार्केट की तंगी ही है पर असली वजह जिस तरलता की कमी का होना है वो है भीतरी तरलता की कमी । अर्थात इसके लिए हमको तरलता के व्यापक अर्थ को समझना होगा और वो अर्थ है हमारी मानसिकता का तंग होना । तरलता यहाँ पर उस विश्वास को इंगित करती है, जो आपसी व्यवहार के धरातल की वो जमीन होती है जिस पर हम खड़े होते है पर अगर हम उस विश्वास को दाव पर लगाने की बाजी चल देते है तो वहाँ पर उस जमीन पर ही प्रहार होता है जहाँ पर हमारे ख़ुद के पांव खड़े होते है और उस कुल्हाडी से अपने पांव काटने की उस साजिश में हम ख़ुद हिस्सेदार हो जाते है। अगर आप मनीमार्केट में आई तरलता की कमी पर गौर करे तो इस कमी का मूलभूत कारण विस्वास का ही न होना है हमने अब अपने आप पर भी विश्वास करना छोड दिया है अतः हम दुसरो पर विश्वास भला कैसे करसकते है ? शायद तभी एक बैंक दुसरे बैंक पर विश्वास करने से मना कर देती है और अविश्वास की वो आंधी तरलता की कमी का रूपक बनकर समूचे अर्थ तंत्र की जड़ो को हिला देती है, इसलिए विश्वास शब्द की विशालता को हम जब तक नजरंदाज करते रहंगे तब तक मंदी के बादल हमारे अर्थ तंत्र को ऐसे ही घेरे रहेंगे इस मंदी की सबसे बड़ी वजह आपसी विश्वास की कमी व चादर से बाहेर पैर पसारने की लाचारी होना है ,यह मंदी हमारे अंत लोकन की मांग करती है जिसके लिए शायद हम तैयार जल्दी नही हो सकते फ़िर मंदी जल्दी कैसे जा सकती है ?

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