Saturday, April 18, 2009

तीसरे मोर्चे
के शीशे पर
फेका गयापत्थर
मनमोहन के
अपने घर में
लग सकता है
बंगाल के
चुनावी दंगल में
अमंगल
हो सकता है
संजय सनम

Friday, April 17, 2009

कहां गये वे समाजसेवी?

फर्स्ट न्यूज साप्ताहिक के पिछले अंक में सेवाधर्म करने वालों से एक विनम्र अपील एक गरीब महिला की जीवन रक्षा के लिए प्रकाशित की गयी थी तथा स्वयं सेवी संस्थाओं व समाज सेवियों से सहायता का हाथ बढ़ाने का अनुरोध किया गया था अत्यंत गंभीर अवस्था में इस महिला को रिकवरी नर्सिंग होम के संचालक डा. एस. के. अग्रवाल ने मानवीयता का जज्बा दिखाते हुए अपने नर्सिंग होम में भर्ती करके ८ तारीख की आधी रात से ही उसके इलाज में जूट गये और उनके अथक प्रयास की वजह से आज वो महिला खतरे से बाहर आ गयी है।फर्स्ट न्यूज के एक फोन पर डा. एस. के. अग्रवाल ने यह कहते हुए कि मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगा व इलाज में खर्च को जहां-जहां कम किया जा सकता है मैं अपनी तरफ से वो सब कुछ भी करूंगा। डाक्टर एस. के. अग्रवाल की इस भावना का ही कमाल था कि मैं उस महिला को जो कल्याणी के जवाहरलाल नेहरू सरकारी अस्पताल में बिना सटीक इलाज की वजह से छटपटा रही थी को रिकवरी नर्सिंग होम में लाने की हिम्मत कर सका। लेकिन मुझे दुख इस बात का है कि उस विनम्र अपील पर समाजसेवी का तमगा लगाकर सेवा का प्रचार करने वालों पर खास असर नहीं हुआ। मैंने फर्स्ट न्यूज के उस पत्र को अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं, उद्योगपति व स्वनामधन्य समाज सेवियों तक इस आशा के साथ पहुंचाया कि वे लोग रिकवरी नर्सिग होम के डा. एस. के. अग्रवाल की इस पहल रूपी सेवा धर्म यज्ञ में अपनी आहूति अर्पित करेंगे। पर ऐसा लगा जैसे अखबारों में सेवा धर्म करते दिखने वाले तथा मंचों पर नजर आने वाले वो बड़े-बड़े नाम अखबार में अपनी फोटु व खबर छपाने के लिए तो हजार रुपये का नोट दे सकते हैं पर बिना प्रचार की सेवा में एक रुपया भी खर्च नहीं कर सकते। मैं हृदय से आभारी हूं हावड़ा ब्लेक रोज क्लब के श्री जयप्रकाश गुप्ता का जिन्होंने आपात स्थिति में ४ बोतल खून का प्रबंध करवाया तथा उन सभी सेवाधर्मी बंधुओं का जिन्होंने बिना किसी प्रचार की अपेक्षा के अपने सामर्थ्य के अनुसार अपना अंश दान करके यह बताया कि कलयुग के इस काल में सतयुग का सत्व छिपे हुए रुस्तम के रुप में जिन्दा है- जिससे इंसानियत का यह शब्द गौरवान्वित होता है। अब पाठकगण इनमें और उनमें फर्क देखें... एक तो ये है जो बिना नाम की आशा के अपने सामर्थ्य के अनुसार जरूरतमंदो की जरूरत को पूरा करने में सहयोग बनते हैं, एक वो है जिनको प्रायः आप अखबारों में समाज सेवी के अलंकरण से सेवा कार्य का नगाड़ा बजाता सा देखते हैं और उनमें से अधिकांश की फोटु व खबर लिफाफे के वजन के आधार या सालाना कांट्रेक्ट के आधार पर छपती है...। सेवा धर्म की नींव की ईंट और कंगुरे की पहिचान हमको करनी है तथा नींव की हर ईंट का हमको सम्मान भी करना होगा। चिकित्सा के इस पेशे में मानवीयता की मिसाल रिकवरी नर्सिंग होम के संचालक डा. एस. के. अग्रवाल ने जो दिखाई है वो संपूर्ण चिकित्साजगत में प्रेरणादायी है। मानवीयता का सच्चा सम्मान डा. एस. के. अग्रवाल जैसे व्यक्तित्व को मिलना चाहिए ऐसे व्यक्ति का अभिनन्दन सेवा धर्म की असली परिभाषा को रेखांकित करता है। देखना यह है कि क्या सेवा संस्थाएं प्रेरणा की इस अलख को जगाने की कवायद करती है?यह घटना मेरे लिये चमत्कार से कम नहीं है क्योंकि शांति देवी को जब ८ अप्रैल की मध्य रात्रि में मरणासन्न स्थिति में रिकवरी नर्सिंग होम में भर्ती किया गया था उस वक्त न तो यह पता था कि ये बच भी पायेगी या नहीं और न ही यह समझ पाये थे कि इलाज में कितना खर्च होगा?पहली हिम्मत डा. एस. के.अग्रवाल ने दी थी कि मरीज की जान बचाने व खर्च में कटौती की भी हर संभव कोशिश की जायेगी। शेष कार्य फर्स्ट न्यूज में की गयी अपील ने किया.. नर सेवा को नारायण सेवा मानने वाले अपना फर्ज अदा कर गये... इस गरीब महिला के इलाज का खर्च अभी तक डा. अग्रवाल ने जोड़ा नहीं है पर सेवाधर्मी महानुभावों की तरफ से आई राशि का योग पच्चीस हजार की जोड़ पार कर चुका है. यह चमत्कार से कम नहीं है.. जहां ऐसे सहृदयी लोग छुपे रुस्तम की तरह रहते हो वहां सेवा की पहल करने की हिम्मत अब और भी की जा सकती है क्योंकि बाद में सम्हालने वाले दयावान लक्ष्मीपुत्रों का साथ मिल जाता है। ईश्वर से कामना है कि ऐसे महानुभावों को सुखी-शांति व समृद्धि की त्रिवेणी संगम प्रदान करे जो असहाय के सहाय बनकर वक्त पर काम आते हैं।मुझे आत्म संतुष्टि है कि फर्स्ट न्यूज में कार्यरत कृष्ण कुमार दास के सर पर मां रूपी छत गंभीर तूफान से डा. एस. के. अग्रवाल की मानवीय पहल व सहृदयी महानुभावों के सामूहिक प्रयास से बच गयी। मैं इन सभी महान आत्माओं को आभार सहित वंदन करता हूं। संजय सनम

Sunday, April 12, 2009

दिन-दहाड़े लूट रही पुलिस

फर्स्ट न्यूज कार्यालय डेस्ककोलकाता। ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन का कारण बताकर, गाड़ी को अटकाकर रिश्वत रूपी ५०० रुपये मांगने व नहीं देने पर टैक्सी को श्यामपुकुर थाने में ले जाने व टैक्सी में पत्रिकाओं को लाने वाले व्यक्ति को थाने में बंद करने की धमकी देकर उस व्यक्ति से ३०० रुपये ऐठने की घटना शोभाबाजार मेट्रो के पास दिनांक ७ अप्रैल २००९ को मध्यान्ह २.३० बजे के करीब हुई। इस घटना में अपनेे आपको स्टार आनन्द का पत्रकार बतलाने वाला एस. भट्टाचार्य ट्रैफिक पुलिस कांस्टेबल द्वारा रुपये उगाहने की प्रक्रिया में दलाल सी भूमिका का निर्वाह कर रहा था। लोकनाथ बुक बाइडिंग से ७ अप्रैल मध्यान्ह २.३० बजे करीब १८०० फर्स्ट न्यूज पत्रिकाओं की एक खेप एक टैक्सी नंबर डब्ल्यूबीओयू-६०५१ के द्वारा फर्स्ट न्यूज हावड़ा मैदान के लिए लाई जा रही थी कि शोभा बाजार मेट्रो के पास ट्रैफिक कांस्टेबल दुर्गापदो राजक ने टैक्सी को अटका कर उसमें सवार बुक बाइन्डर "बापी' से जवाब तलब करने लगा। जब फर्स्ट न्यूज कार्यालय को इसकी सूचना मिली तो कार्यालय के द्वारा बापी से संपर्क करते हुए उपस्थित अधिकारी से बात की गयी तब अधिकारी कांस्टेबल दुर्गाप्रसाद ने फर्स्ट न्यूज संपादक को बताया कि टैक्सी मेंपत्रिकाओं को लाना नियमों का उल्लंघन है तब संपादक के द्वारा खेद प्रगट करते हुए पुनःऐसी भूल न होने का आश्वासन देते हुए एक निवेदन किया गया कि आप जुर्माना काटकर रसीद देकर गाड़ी को कृपया छोड़ दें इतने में ही उस अधिकारी महोदय ने अपना फोन उस व्यक्ति को पकड़ा दिया जो अपने आपको स्टार आनन्द का पत्रकार बताते हुए यह कहने लगा कि हमारे इलाके से हमको बिना पूछे पत्रिकाएं टैक्सी में लायी जा रही है। जब उससे उसका नाम पूछा गया तब उसने एस. भट्टाचार्य बतलाया फिर जब उसको जुर्माना कटाने व रसीद दिलवाने की बात कही गयी तब उस तथाकथित पत्रकार ने यह कहते हुए कि रसीद नहीं मिलेगी फोन काट दिया। इसके पश्चात वे लोग मिलकर बुक बाइन्डर को धमकाने लगे तथा ५०० रुपये की मांग की गयी। जब बापी से कार्यालय को यह जानकारी मिली तो उस तथाकथित पत्रकार व कांस्टेबल से बात करवाने को कहा गया लेकिन वे लोग फिर बात करने के लिए नहीं आये।तब कार्यालय से बुक बाइंडर बापी को निर्देश दिया गया कि अगर पुलिस व तथाकथित दलाल श्यामपुकुर पुलिस स्टेशन टैक्सी को ले जाना चाहते हैं तो आप चले जाइये। पर बिना रसीद के रुपये नहीं देने है।जब बापी ने अपना यह निर्णय उन लोगों को सुनाया तो वे लोग उसे थाने में ंबद करने की धमकी देकर बापी से ३०० रुपये झाड़ने में कामयाब हो गये। जब रुपये देकर छुड़ाने की जानकारी फर्स्ट न्यूज कार्यालय को मिली तो कार्यालय ने पहले श्यामपुकुर थाने में फोन करके पुलिस द्वारा दिन दहाड़े रिश्वत रूपी लूट की यह घटना बताते हुए शोभाबाजार मेट्रो के उस चौराहे पर ड्यूटी पर तैनात अधिकारी का नाम जानना चाहा तब फर्स्ट न्यूज कार्यालय को यह बतलाया गया कि हो सकता है वहां पर ड्यूटी में तैनात अधिकारी ट्रैफिक पुलिस का हो यह कहते हुए उन्होंंने जोड़ा बागान ट्रैफिक कंट्रोल का फोन नंबर दिया। इसके पश्चात ट्रैफिक (जोड़ा बगान) बात की गयी तथा फर्स्ट न्यूज प्रतिनिधि श्रीमती सरवानी दास को दोनों विभागों में इस रिश्वत कांड की शिकायत करने व रिश्वत लेने वाले पात्रों का बायोडाटा लेने के लिए भेजा गया। जब फर्स्ट न्यूज प्रतिनिधि श्रीमती सरबनी दास ने जोड़ा बागान ट्रैफिक गार्ड कार्यालय में इस घटना को बताकर उस वक्त ड्यूटी आफिसर का नाम जानना चाहा तो ड्यूटी आफिसर सार्जेन्ट दिप्तियान कोर बताया गया तथा यह आश्वासन भी दिया गया कि अगर हमारे विभाग का कोई अधिकारी गुनहगार पाया गया तो उसको सजा दी जायेगी। जब फर्स्ट न्यूज प्रतिनिधि शोभा बाजार मेट्रो के पास घटनास्थल पर पहुंच कर वहां ड्यूटीरत सार्जेन्ट से घटना का विवरण जाना तब उन्होंने इस घटना से अनभिज्ञता जाहिर करते हुए उस वक्त घटनास्थल पर कार्यरत ट्रैफिक कांस्टेबल दुर्गा पदो रजक को बुलवाया गया जो कि इस रिश्वतकांड का एक खास पात्र था,ने घटना को स्वीकार किया परंतु रिश्वत लेने से इन्कार किया। हैरत की बात यह रही कि ट्रैफिक कास्टेबल दुर्गापदों ने उस तथाकथित पत्रकार एस. भट्टाचार्य को नहीं पहचानने की भी बात कही इस बीच ट्रैफिक के एडीशनल ओसी ने फर्स्ट न्यूज प्रतिनिधि के साथ ट्रैफिक कांस्टेबल दुर्गापदों को श्यामपुकुर थाने में अपनी गाड़ी से भेजा साथ में बुक बाइन्डर बापी भी था। श्यामपुकुर थाने के सामने तथाकथित पत्रकार एस. भट्टाचार्य अपनी बाइक के पास खड़े थे जिनकी पहचान बापी के द्वारा हमारे प्रतिनिधि को करवाई गयी। आश्चर्य तब हमारे प्रतिनिधि को हुआ जब आरोपी कांस्टेबल दुर्गापदो उस पत्रकार से घुल मिल बात करते दिखे फिर हमारी प्रतिनिधि ने आरोपी पत्रकार एस. भट्टाचार्य से घटनाक्रम के बारे में बात करने की कोशिश की तो एस. भट्टाचार्य ने उस महिला प्रतिनिधि के साथ अशालीन शब्दों का प्रयोग करते हुए यहां तक कह दिया कि यहां तक आने के लिए आपकी हिम्मत कैसे हुई?... एटा आमार इलाका... ओसी व ट्रैफिक कांस्टेबल आमार बांधु... जब यह संवाद फर्स्ट न्यूज प्रतिनिधि व आरोपी पत्रकार एस. भट्टाचार्य के बीच चल रहा था तब श्यामपुकुर थाना प्रभारी एस. के. मित्रा थाने के सामने हो रहे इस तनाव का जायका सामने खड़े होकर ले रहे थे तथा एक महिला पत्रकार को पत्रकारिता की शिक्षा धमकियों से देने वाले उस तथाकथित पत्रकार को नहीं रोक रहे थे। जब फर्स्ट न्यूज प्रतिनिधि ने थाना प्रभारी से सवाल करने की कोशिश की तो उन्होंने झिड़कते हुए न्यूज बनाकर छापने की चुनौती तक दे दी।उक्त आरोपी पत्रकार ने उस पुलिस गाड़ी ड्राइवर को धमकाते हुए कहा कि आजे बाजे लोग को केनो तुले सो? एडशिनल बाबू र कोथाय? उनाके बोलबे आमार संगे कोथाय कोरते....। यहां पर ये आरोपी पत्रकार अपने आपको ऐसा दिखा रहा था जैसे पुलिस विभाग की इस क्षेत्र की चाबी ही उसके पास हो।जब फर्स्ट न्यूज प्रतिनिधि वहां से शोभाबाजार मेट्रो पहुंची तब उक्त आरोपी पत्रकार ने फर्स्ट न्यूज व उसके संपादक के बारे में सवाल पूछने शुरू कर दिये तथा शोभा बाजार के इस इलाके को अपना इलाका बताकर फिर धमकी दी तथा फर्स्ट न्यूज संपादक को घटनास्थल पर आने की चुनौती दी इस अवसर पर आसपास के लोग व ड्यूटीरत पुलिसकर्मी भी थे। मामले को इस सीमा तक बढ़ते देखकर फर्स्ट न्यूज संपादक घटनास्थल पर पहुंचे पर उनके पहुंचने से पहिले ही ये तथाकथित पत्रकार वहां से निकल गया। शोभाबाजार मेट्रो के पास आधे घंटे से भी अधिक फर्स्ट न्यूज संपादक ने वहां खड़े स्थानीय लोगों से बात की तब पता चला कि पत्रकारिता की वर्दी पहन कर यह शख्स श्यामपुकुर थाने व जोड़ाबागान ट्रैफिक कंट्रोल के साथ मिलकर दिन दहाड़े लूट की दुकान चला रहा है। पर स्थानीय लोग पुलिस के झमेले की वजह से प्रतिरोध नहीं कर पा रहे हैं। यहां के लोगों से बात कर फर्स्ट न्यूज संपादक अपने प्रतिनिधि श्रीमती सरबनी दास के साथ श्यामपुकुर थाना प्रभारी से इस घटनाक्रम पर मिलने पहुंचे। जब पत्रकार एस.भट्टाचार्य का नाम आया तब थाना प्रभारी सम्राट के नाम से उसकी पहचान बताने लगे तथा उन्होंने सम्राट भट्टाचार्य व इस घटना की शिकायत स्वीकार करने की तो बात कहीं पर कार्रवाई क्या की जायेगी, उसको टाल गये। थाना प्रभारी ने सम्राट के साथ पारिवारिक रिश्ते से तो इन्कार किया पर गाढ़ी जान पहचान के रूप में दोस्ती के रिश्ते को फिर भी नहीं छुपा सके। थाना प्रभारी ने इस समूची घटना को ट्राफिक पुलिस पर डाल दिया तथा इस सवाल का भी जवाब नहीं दे सके कि थाने के सामने उनकी उपस्थिति में महिला पत्रकार के साथ अगर कोई उनका बन्धु अभद्र व्यवहार कर रहा है तो उस वक्त वो चुपचाप क्यों देखते रहे?थाना प्रभारी के द्वारा सम्राट भट्टाचार्य के विरुद्ध स्टार आनन्द में शिकायत दर्ज करवाने की नसीहत आश्चर्यजनक लगी पर छुटते-छुटते थाना प्रभारी ने जब कानून को हाथ में ले लेने की सलाह कुछ इस तरह जब दी कि "कहीं वो मिले तो धक्का मार दीजिए' तब ऐसा लगा कि थाना प्रभारी अपनी गलती को छुपाने के लिए सामने वाले पक्ष को गुनाह करने के लिए उकसाने की कोशिश में किस हद तक नीचे गिर सकते हैं।इस समूचे घटनाक्रम की सार स्वरूप शिकायत माननीय पुलिस कमिश्नर सहित बंगाल गृह सचिव, डीसी (कंट्रोल रूम) व अन्य उच्च विभागों में कर दी गयी है।इस घटना के प्रतिवाद के माहौल का असर श्यामपुकुर थानान्तर्गत शोभा बाजार मेट्रो के पास देखा जा रहा है। अब पुलिसिया गुण्डागर्दी व दलाल की हेकड़ी का पारा उतरा हुआ बताया जा रहा है तथा सम्राट भट्टाचार्य नाम से वो पत्रकार जो पहले स्टार आनन्द का अपने आपको पत्रकार बतला रहे थे अब उन्होंने नाम बदलने शुरू कर दिये हैं। स्थानीय लोग पुलिस की गुण्डागर्दी व पत्रकार के भेष में पुलिस के इस दलाल की दादागिरी से निजात चाहते हैं।

इनकी वर्दी उतारी जाये

फर्स्ट न्यूज साप्ताहिक में प्रकाशितअगर कानून के रखवाले कानून की रक्षा की वर्दी पहनकर दिन- दहाड़े बीच सड़क पर नियम-कानून की आड़ में भाड़े के दलाल के साथ आम जनता को डराकर-धमकाकर उनके पॉकेट से रुपये निकलवाने जैसा घृणित काम करें... और थाने के अधिकारी दलाल व उस कॉन्स्टेबिल का संरक्षण करें- तो ऐसे लोगों की तत्काल प्रभाव से वर्दी उतार दी जानी चाहिए़।इसी प्रकार पत्रकारिता की गरिमा को कलुषित करने की कोशिश अगर कोई व्यक्ति पुलिस का दलाल सा बनकर बीच सड़क में आम जनता को कानून का डण्डा द़िखाकर रिश्वत का पैसा पुलिस को दिलाने में पुलिस का सहायक बनता दिखे तो ऐसे पत्रकार से कलम चलाने का अधिकार भी छीन जाना चाहिए़़। क्योंकि पुलिस की वर्दी और पत्रकार की इस कलम का दायित्व बहुत बड़ा है। इसलिये इन दोनों का सम्मान व रुतवा अपनी मर्यादा व गरिमा महत्ता को सुरक्षित न रख सके तो ऐसे लोगों को इस सम्मान व रुतवे का सिम्बल किसी भी रूप में नहीं मिलना चाहिेए।कानून का उल्घंन करने की इजाजत तो किसी को नहीं है-पर अगर कोई टैक्सी में पत्रिकाओं को लाद कर ला रहा है और कानून के रखवाले उसको रोककर तथा थाने में अंदर करनें की धमकी देकर अगर उस अल्पशिक्षित व्यक्ति से ३०० रुपये झाड़ ले... तो क्या इनके ऐसा करने से कानून का कायदा पुरा हो जाता है? अगर कहीं भी कानून की अवहेलना होती है तो उसका जुर्माना लेकर उसकी रसीद पकड़ानी चाहिए मगर जब पुलिस अपने साथ बिना वर्दी के दलाल को रखकर आम जनता को डण्डे के जोर पर कानून का पाठ रिश्वत लेकर अपनी पॉकेट को तिजोरी बनाती हुई दिखे तो ऐसे वर्दी वाले गुण्डो और बिना वर्दी वाले दलालों को सजा सुनिश्चित होनी चाहिए।७ अप्रैल को शोभाबाजार मेट्रो के पास हुई घटना की पुरी खबर पाठक पढ़ लें और अपने आपको अन्याय का प्रतिरोध करने के लिये तैयार करें... जब इनकी हरकतों के पिटारेें को आम जनता बजाने लग जायेेगी ..तब ये लोग समझेंगे कि कानून की रक्षा की इस वर्दी के गरिमामय कपड़े के फटने की सजा का दर्द कैसा होता है? ७ अप्रैल को शोभाबाजार मेट्रो के पास हुई घटना को शिकायत के रूप में पुलिस कमिश्नर व अन्य उच्च अधिकारियों को फैक्स कर दिया है।मुझे आशा है कि पुलिस कमिश्नर इस मसले की गम्भीरता को समझते हुये त्वरित कारवाई करेंगे।मैं श्याम थाना प्रभारी श्री एस.के. मित्रा व ट्रेफिक कॉन्स्टेबल दुर्गापदो राजक को तुरंत प्रभाव से बर्खास्त करने कि मांग करता हूं... व पुलिस दलाल की भूमिका निभाने वाले तथाकथित पत्रकार सम्राट भट्टाचार्य की संलिप्तता की जांच की मांग करते हुए यह निवेदन करता हूँ कि ऐसे लोगों को ""पत्रकार'' के रूप में उन सभी सुविधाओं से वंचित किया जाये जिनका दुरुपयोग करके ये लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को कलंकित कर रहें हैं। -संजय सनम

Wednesday, April 8, 2009

अल्पसंख्यक किसे कहते हैं?

इस देश की राजनीति ने मजहब के आधार पर अल्पसंख्यक व बहुसंख्यक की परिभाषा करते हुए वोटों की थाली बटोरने का ऐसा घृणित काम किया है जिसकी वजह से यर्थाथ बहुत पीछे छूट गया है। दरअसल इस शब्द को परिभाषित जाति या मजहब के नाम से नहीं करना चाहिए और न ही इसमें किसी समुदाय को दायरे में लाना चाहिए। अगर वास्तव में इस शब्द को परिभाषित किया जाये तो धनी समृद्ध लोग यहां बहुत कम है इसलिए अल्पसंख्यक तो वो है। चूंकि वो संपन्न है इसलिए ये लोग किसी भी रूप से सरकारी सहायता व संरक्षण व आरक्षण के हकदार नहीं बनते। इस देश की तीन चौथाई आबादी जो गरीबी, भूखमरी, बेकारी से जूझ रही है वो बहुसंख्यक है उसमें सब जाति, धर्म के लोग है। असली आरक्षण, संरक्षण तो उनको होना चाहिए पर सियासत के लोगों ने अपने वोटों का आरक्षण करने के लिए धर्म की लकीर अल्पसंख्यक व बहुसंख्यक के नाम पर खींच दी जिसकी वजह से जिन लोगों को सरकारी धन व सुविधाओं का लाभ मिलना चाहिए था वो उससे वंचित रह गये और लाभ सत्ता के ठेकेदार उठाने लगे।अगर इस शब्द का उपयोग सही रूप से किया जाता तो देश की तीन चौथाई आबादी आज जीवनयापन के लिए जुझती नजर नहीं आती....। पर राजनीति... गरीबी को नहीं मिटा सकती... बेशक वो भूख से गरीबों को मिटा सकती है, और बेकारी, गरीबी को मिटाने के नाम के तवे पर वे सियासतदान अपनी रोटियां सेंकते हैं और मजहब की लकीर रूपी दीवार जनता में जान बुझकर खींचते हैं। अल्पसंख्यक शब्द का महत्व अल्पसंख्यक के लिए नहीं बल्कि राजनीति और राजनेताओं के लिए है। इसलिए इस शब्द को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है। संजय सनम

Monday, April 6, 2009

रासुका लालू पर लगना चाहिए |

वरुण ने हाथ तोड़ने की बात कही तो हंगामा हो गया और रासुका के तहत उन पर कई तरह के अभियोग लगाकर उनको जेल भिजवा दिया गया ,पर लालू ने एक चुनावी रैल्ली में एक समुदाय को खुश करने के लिए यहाँ तक कह दिया की वो अगर गृह मंत्री होते तो वरुण को बुल्ल्दोजेर से कुचलवा देते .लालू का यह बयां क्या कातिलाना नही है ?माना की वरुण का बयां सांप्रदायिक था पर लालू ने भी शालीनता कहा रखी ?एक समुदाय विशेष को खुश करने के लिए वो कातिल बननेको भी तेयार हो गए .क्या गृह मंत्री को कानून हाथ में लेकरकिसी पर बुल्दोजेर चलानेकी छुट है अब इस विषय पर बहस होनी चाहिए वरुण तो अभी अप्रिपक युवा राजनेता है परलालू ने तो राजनीती में अपने बाल सफेद किए है फ़िर भी अगर वो ऐसी गलती कर सकते है तो वरुण के गुनाह पर परदा ख़ुद पड़ जाता है लालू ने अपने बयां से इस देश की जनता को यह बता दिया है की वोटोंकी गठरी को पकड़ने के लिए वो सरे आम कत्ल भी कर सकते है ...अब इस देश की जनता के लिए यह chunoti है की कत्ल की mansha रखने walo को sanshad में jane से कैसे roke ?
sawal यह भी है की लालू पर attamp तो murder का mamla क्या नही banta ?अगर वरुण पर रासुका लग सकता है तो यहाँ लालू कैसे bach सकते है ?अगर लालू में thodi भी manwiyata है तो उनको अपने बयां पर पलटने की बजाये हाथ जोड़ कर वरुण से माफ़ी मांगनी चाहिए

संजय सनम

Sunday, April 5, 2009

काला धन

विदेशो में जमा
भारतीयों का
करोडो डालरों का काला धन
अगर भारत में आएगा
तो कहा जाएगा ?
मेरा अनुमान है
सब राजनेतिक दल
लोकसभा चुनावों में
हुए खर्च की
खाई को भरने
के लिए
सर्वे सम्मति से
इसका उपयोग
शान्ति से कर लेंगे
जनता को विकाश की
जुटान चखा कर
एक नम्बर में
खर्चा भर देगे
हां ..इससे
जनता का
कुछ आगे भला होगा
क्योकि
राजनीती का पेट
विदेशी काले धन से
जब भरा होगा
तो सरकारी खजाना
इनके भछन से
बच जाएगा
और
जनता का पैसा
फ़िर
जनता के लिए
लग जाएगा

संजय सनम

Saturday, April 4, 2009

मायाजी,ममता को मत ललकारिये |

मेनका गाँधी को जबाब देने के लिए मायावती ने ख़ुद को करोडो बेटो की माँ यह कहते हुए कहा है की सिर्फ़ जनम देने वाली को ही माँ नही कहा जाता ..इसके लिए उन्होंने मदर टेरसा का उदहारण अपने स्पस्टीकरण को मजबूत करने के लिए देते हुए अपने आपको मानवीयता की माँ मदर टेरेसा के बराबर खड़ा करने में हिचक महसूस नही की काश ..मायाजी को कोई यह बतलाये की आप करोडो बेटो को बार-बार बदलने वाली अर्थात कभी दलित तो कभी सवर्ण तो कभी मुस्लिम को रिझाने वाली राजनेतिक माँ तो हो सकती है पर प्रसव वेदना से गुजर कर सीने से सटाकर अपनी छाती का ममत्व रूपी दूध पिलाने वाली न तो मेनका हो सकती है और न ही मानवीयता को अपना कर्म -धर्म बनने वाली मदर टेरेसा सरीखी माँ हो सकती है
मायाजी ,आप वोट बटोरने के लिए राजनितिक ममता का आधुनिक रूप तो हो सकती है पर बेटे से मिलनेके लिए जेल तक आने वाली व ममत्व की आशीष का दूध पिलाने वाली मेनका कभी नही हो सकती इसलिए ममत्व व माँ को राजनीती की चोसर पर लाने की गुस्ताखी कृपया न करे क्योकि माँ का अंचल और उसकी कोख की तड़प कोई राजनितिक माँ नही समझ सकती ..इसलिए दिखावटी ममता से जन्म्दय्नी ममता को मत ललकारिये निठारी कांड को क्या भूल गई है आप?...उन माओ की ममता के क्रंदन ने मुल्याम्सिंह को आउट कर दिया ...इसलिए कुर्सी का नाजायज लाभ मत उठाइए ..वरुण और कानून के बीचराजनीती के दाव पेंच को मत लाइए

चुटकी

माँ की ममता
के
बिच
माया
आ रही है
शायद उसको अब
इस बात का
डर लग रहा है कि
एक गठरी को
बचाने के
जुगत में
वोटो कि
बड़ी गठरी
फिसली जा रही है ।
राजनीती का यह
नजारा साफ बताता है कि
कुर्सी का पहिया
वोट बैंक पर
बठेने के खातिर
एक माँ की
ममता के बिच
बदनीयत के साथ
इस तरह आ जाता है ।

संजय सनम

Friday, April 3, 2009

योग बाबा रामदेव के नाम खुला पत्र



आदरणीय योग गुरु जी,सादर अभिवादन!कल दिनांक २ अप्रैल २००९ को आस्था चैनल के माध्यम से स्वदेशी और स्वाभिमान के प्रेरक विषय पर आपके सान्निध्य में बौद्धिक वक्ताओं के विचारों को सुनकर... मुझे ऐसा लगा कि आप इस देश के करोड़ों लोगों में उत्प्रेरक बनकर प्रेरणा तो जगा रहे हैं पर जिस तरह से आपने शरीर के तंत्र को ठीक करने के लिए प्रायोगिक रूप से योग खुद करके लोगों को सिखाया और बीमार शरीर को स्वस्थ बनाया वैसा प्रयोग बीमार शासन तंत्र को स्वस्थ करने के लिए आप स्वयं करने से कतरा रहे हैं। बाबा,इस देश की राजनीति की गंगा मैली है यह सब जानते हैं, जनता भी जानती है... पर वो क्या करें? उसके पास पांच वर्षों से एक वार निर्णय देने का अवसर आता है॥ और उसमें उसको उन ही लोगों की जमात से चुनना पड़ता है। पार्टी, निशान, नेता तो बदलते है पर फिर भी जनता की तकदीर और इस देश की तस्वीर नहीं बदलती क्योंकि राजनेताओं का चरित्र नहीं बदलता... आखिर एक ही थैले के चट्टेबट्टे जो ठहरे... इसलिए बाबा देश का भाग्य नहीं बदलता... क्योंकि जनता के पास विकल्प कहां है? ऐसे नैतिक, ईमानदार, राष्ट्रप्रेमी नायकों की कतार कहां है? और जो इस तबके के कुछ है वो इस मैली गंगा में कुदकर इसको साफ करने के लिए अपने हाथ गंदे करने को तैयार नहीं है।बाबा,आप भी तो मैली गंगा के किनारे खड़े होकर करोड़ों लोगों को इसके बारे में जता रहे हैं पर आप भी तो छलांग नहीं लगा रहे हैं जबकि इस देश की जनता आपको गुरु मानती है आपके आदेश की अनुपालना के लिए बगले नहीं झांकती आपके पास देशप्रेम से ओतप्रोत, विचारवान, कार्यकर्ताओं की टीम है... फिर भी आप सिर्फ उद्बोधन दे रहे हैं। जिस तरह से शरीर तंत्र की प्रक्रिया को दुरुस्त करने के लिए आपने करोड़ों लोगों को प्राणायाम खुद करते हुए दिखाकर सिखाया.... वैसे ही राष्ट्र के बीमार तंत्र को दुरुस्त करने के लिए आपको राजनीति की मैली गंगा को साफ करने की प्रक्रिया उसमें कूदकर स्वयं साफ करते हुए दिखानी होगी।बाबा,व्यवस्थाएं, नियम, कानून, तो संसद में बनते हैं... अगर इनको बदलना है तो आपको जन प्रतिनिधि का दायित्व ओढ़कर अपने कुछ विशेष बौद्धिक कार्यकर्ताओं के साथ संसद में जाना होगा।आपने कल कहां था, मुझे पी।एम। नहीं बनना, मंत्री नहीं बनना.... मत बनिये। पर इस देश की व्यवस्थाकेतंत्र को बदलने के लिए अर्थात नीति निर्धारण करने के लिए आप अपनी ऊर्जा को जनता से भरे मैदानों में नहीं बल्कि संसद में लगाइए॥ तब देश का भला होगा।बाबा,धर्म, न्याय, की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अधर्म का सहारा लेने को भी पाप नहीं माना था, क्या आप साधु के इस चोले के लिए राजनीति की इस मैली गंगा में जाने से कतरा रहे हैं? आपको डर है कि लोग क्या कहेंगे? आखिर रामदेव भी नेता बनने के लिए लालायित हो गये.... इसी डर की वजह से आपको बार-बार खुलासा करना पड़ता है॥ कि मुझे मंत्री नहीं बनना... है ना?अगर आप स्वयं प्रयोग करने से हिचकिचाते हैं तो फिर स्वाभिमान की यह शमां मत जलाइये।अगर इस देश के प्रति आपको वास्तव में श्रद्धा है प्यार है.. तो आप अपनी सामर्थ्य का जलवा दिखाइये।आप अपने निष्ठावान, समर्थ, संकल्पी कार्यकर्ताओं को आने वाले लोकसभा चुनाव के मैदान में उतारिए और उनको नेतृत्व प्रदान कीजिए। जिस दिन संसद में राष्ट्रप्रेमी नायकों का एक टुकड़ा जन प्रतिनिधि बनकर आ जायेगा उस दिन भ्रष्ट नेताओं के चंगुल से देश छूट जाएगा और उसका चेहरा बदल जाएगा। अवसर एकदम सामने हैं.... बाबा! अगर आप चाहें तो इस देश की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल सकती है पर इसके लिए आपको सड़क से संसद में जन प्रतिनिधि के रूप में जाना होगा। अगर यह हिम्मत नहीं है तो बाबा फिर जनता के दिल की कसक को और मत तड़पाइये, फिर इन करोड़ों को अंधेरों में ही रहने दीजिए झूठी रोशनी मत दिखाइए।मेरा दावा है कि अगर आप इस समाधान को स्वीकार करते हैं तो ६ महीने के अंदर देश के सूरते हाल खुश्गवार नजर आने लगेंगे। पर इसके लिए व्यवस्था तंत्र को कपाल भारती आपको संसद में करनी व करवानी होगी। क्या आप ऐसा कर सकते हैं।संजय सनम