Saturday, June 25, 2011

लोकपाल की जगह पोलपाल!

लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करने में समाज की तरफ से अन्ना हजारें व उनके सहयोगियों को आम जनता के अधिकारों के लिए सरकार से जिस तरह जुझना पड़ रहा है- उससे यह संदेश आ रहा है कि सरकार लोकपाल के नाम पर पोलपाल का कुछ ऐसा विधेयक लाना चाह रहीं है जहां जनता के पास अधिकारों के रुप में खाली पिटारा हो-और सरकार व राजशाही के खिलाफ बुलन्द आवाज करने वालों की इच्छा रखने वालों के खिलाफ कुछ ऐसे कायदे-कानून लाये जाये जिससे कोई आवाज उठाने की हिम्मत ही नहीं करें।

अगर किसी अधिकारी के खिलाफ अगर कोई आम जन आरोप लगाये तो उस अधिकारी को मिलेगा सरकारी वकील... और आरोप लगाने वाला आम जन अपने खर्चे पर लड़ेगा। अगर वो अधिकारी जिस पर आरोप लगा है वो दोषी पाया जाता है तो उसको मिलेगी मामूली सजा-लेकिन अगर वो निर्दोष साबित हो तो आरोप लगाने वाले को कड़ी सजा! सरकार की नजर में लोकपाल का अर्थ अगर यही है तो फिर यह लोकपाल नहीं पोलपाल होगा- जहां खुली पोलों पर कारवाई खत्म नहीं होगी- लेकिन पोल खोलने वाला हमेशा चक्रव्यूह में रहेगा।

सरकार ने जनता के अधिकारों व देश की भ्रष्ट्र-निरंकुश व्यवस्था पर अपनी मनःस्थिती साफ कर दी है- लेकिन राजनीति पुरी संवेदनहीन हो गई है - अभी यह कहना शायद उचित न हो।

संसद में बकोल प्रतिनिधि विभिन्न सिद्धांतो- विचारधाराओं के राजनैतिक दल है- अब देखना यह है कि ये जनता, जनतंत्र के समर्थन में अपना मुंह कितना खोलते है?

आने वाले लोकसभा चुनावों में लोकपाल अहम मुद्दा बनेगा और जनता राजनीति की उस डगर पर मुहर लगायेगी जो जनता के अधिकारों के संरक्षण पर आज मुहर लगायेगा अर्थात जनता के लिये संसद में खुलकर बोलेगा। क्योंकि जनता वास्तविक रुप से लोकपाल ही चाहती है।


Tuesday, June 14, 2011

हम सब दोषी हैं....

गंगा बचाव के आंदोलन में एक संत अपने सत्याग्रह को आखरी सांस तक ले जाकर शहीद हो गया और अब हमारी आंखे खुली है कि हम तब क्यों नहीं जगे? जब वो संकल्पित होकर सत्याग्रह में बैठा था... संवेदनहीन सिर्फ राजनीति ही नहीं है... असंवेदन शील हम सब भी हैं- हम में और राजनीति में बस एक फर्क है कि राजनीति मौत पर भी नहीं पसीजती और लाश को हथियार बना कर वार करने से नहीं चुकती... हम बाद में ही सही पर पछतावा भीतर से महसूस तो करते हैं। हम भीड़ को देखते हैं, चकाचौंध को देखते हैं- और उसका हिस्सा बन जाते हैं... यह हमारा सबसे बड़ा गुनाह है- काश हमने उस संत के संकल्प और उसके सत्याग्रह को भी महत्व देकर उसका समर्थन किया होता तो शायद उसकी आवाज पर राजनीति को करवट बदलनी पड़ती... कोई संवाद होता और संत का जीवन नहीं जाता।
दोषी रामदेव भी हैं... उनके ही क्षेत्र में यह घटनाक्रम चला और उन्होंने एक संत के रुप में संत की ही सुध नहीं ली... अब उनकी श्रद्धांजलि बस औपचारिकता लगती है... यहां संवेदना की अनुभूति नहीं है।
दोषी वो संत समाज है- जो बाबा रामदेव की चमक-दमक के पीछे मंडराता नजर आया पर उस संत के सत्याग्रह पर खामोश ही रहा। मीडिया के क्षेत्र से मैं स्वयं व इस क्षेत्र में काम करने वालों को विशेष दोषी मानता हूं- अगर मीडिया के कैमरे वहां चमके होते तथा संवाददाता इस विषय पर सवालों के साथ गरजे होते तो यह विषय आम जनता के बीच जाता और जनता जब जगती तो राजनीति को भी जगना पड़ता... शायद यह मौत तब नहीं होती।
यह मौत संवेदना की मौत है, कर्तव्य परायणता की मौत है तन्हाई- अकेलेपन की मौत है... इस मौत ने कई चेहरों को बेनकाब किया है... गौर से देखे तो सब तरफ राजनीति ही दिखती है और राजनीति में संवेदन नहीं उत्पीड़न दिखता है- यहां सच्चा सत्याग्रही तब तक नहीं बच सकता जब तक वो नामी-गिरामी न हो जाये इसलिये सत्याग्रह करने वालों से निवेदन है कि पहले नाम कमाइये अन्यथा इस देश में सत्याग्रही का हश्र कुछ ऐसा ही होता है।
मीडिया क्षेत्र को सबक लेते हुए एक सिद्धांत लेना चाहिए कि सत्यसंकल्पी कमजोर पक्ष को ताकतवर बनायेंगे- क्योंकि मीडिया की महत्ता व उसकी भूमिका अहम है... और हमको अपनी अहमियत को समझते हुए उस पक्ष की आवाज बनना होगा- जिसके पास चमक-दमक का बाह्य आवरण नहीं है पर संकल्प श्रेष्ठ है... उसकी सफलता में हमारा सहयोग राष्ट्रधर्म व नैतिक सहयोग होता है। इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने भूल सुधार की है... इस सवाल को अच्छी कवरेज के साथ उठाया है- पर प्रिंट मीडिया ने मुख पृष्ट की यह खबर शायद अब तक नहीं मानी है- यहां अधिक प्रसार वाले समाचार पत्रों की जिम्मेवारी बहुत अधिक हो जाती है। बाबा रामदेव अनशन तोड़कर भी पहली खबर बनते हैं... और वो संत सत्याग्रह पर कुर्बान होकर भी पहले पन्ने पर उनकी मौत की खबर नहीं आती.. क्या कहियेगा ?

Friday, June 10, 2011

सत्याग्रह

भष्टाचार

भष्टाचारियों

की

इस व्यवस्था का

सत्याग्रह से

समाधान...

नहीं हो सकता

असुर शक्ति का

नीति से परिहार

नहीं हो सकता...

और जब तक

हम

उनके सामने

नीति विचार

की घंटी

गांधी की

अहिंसा की लाठी

से

दबायेंगे...

तब तक

वो

देश का

निवाला और

निगल जायेंगे...

इसलिए

अब हमें

गांधी को छोड़कर

भगत,

सुभाष,

तात्या,

लक्ष्मीबाई

की

राहों पर

आना होगा

और

प्रहार दर प्रहार

कर

इनका

संहार करना होगा।

भ्रष्ट व्यवस्था

बनाने

वाले

इन व्यवस्थापकों

को

उनकी

भाषा में

समझाना होगा-

उन्होंने

लाठियां चलाई

तो हमको

लट्ठ

चलाना होगा..

तब इस समस्या का

समाधान होगा...

अन्यथा

अमर बेल

की

तरह

और

प्रसार होगा।


-संजय सनम

Friday, June 3, 2011

प्रियंका की रहस्यमय मौत का मामला

-आरोपों के घेरे में स्थानीय पुलिस प्रशासन
-सास-ससुर, पति, जेठ, जेठानी के खिलाफ एफआईआर
-पुलिस ने कहा आरोपी हैं फरार
फर्स्ट न्यूज कार्यालय डेस्क
हावड़ा। राजस्थान के बीदासर कस्बे के थानमल दूगड़ की सुपुत्री प्रियंका उर्फ बोबी छापर कस्बे के विमल सिंह जैन (छाजेड़) परिवार के पुत्र विकास के साथ करीब ४ वर्ष पूर्व ब्याही गई थी-जिसकी १९ मई को मिदनापुर पूर्व के दुर्गाचक हल्दिया में रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मौत का सनसनीखेज मामला सामने आया है।
प्रियंका के बहनोई राकेश तातेड़ व भाई धीरेन्द्र दुगड़ से मिली जानकारी के अनुसार शादी के बाद से ही प्रियंका पर ससुराल पक्ष के द्वारा अत्याचार होता था-ससुराल में प्रियंका की स्थिति नौकरानी से बदत्तर थी। रुपयों की मांग भी होती थी जिसको पीहर पक्ष के द्वारा अपनी हैसियत के आधार पर पूरा भी किया जाता था। लगभग अढ़ाई वर्ष पहले दुर्गाचक हल्दिया में मकान लेते वक्त भी दो लाख रुपए ससुराल पक्ष को और दिये गये। ससुराल पक्ष से प्रताड़ित होने का आभास तो मिला था पर यह सोचकर कि वक्त आने पर सब सामान्य हो जायेगा-कड़ी कार्रवाई का विचार भी नहीं आया था।
धीरेन्द्र दूगड़ के अनुसार उन्होंने यह नहीं सोचा था कि प्रियंका का ससुराल वाले इतने निर्मम हो जायेंगे और सुनियोजित रूप से फिनायल पिला कर प्रियंका को हमेशा के लिए मौत की नींद सुला देंगे।
प्रियंका की मौत पर वहां के स्थानीय लोगों में आक्रोश यह जताता है कि प्रियंका ससुराल में प्रताड़ना को सह रही थी। १७ मई की रात को प्रियंका को घर से बाहर निकालने की भी खबर है। १७ से १९ मई के बीच प्रियंका के फोन पर पीहर पक्ष के द्वारा २० से अधिक फोन किये गये-लेकिन प्रियंका से बात नहीं हो सकी- प्रियंका के मोबाइल से सिम कार्ड निकालने का भी आरोप लगाया जा रहा है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रियंका को फिनायल पिलाने के बाद गंभीर अवस्था में श्याम नर्सिंग होम में १९ मई को सुबह ९.३० के आस-पास ले जाया गया फिर वहां से हल्दिया हास्पिटल व बाद में तमलूक ले जाया गया-जहां प्रियंका ने दम तोड़ दिया।
पीहर पक्ष का आरोप यह भी है कि पोस्टमार्टम भी हमलोगों के पहुंचने से पहले ही करवा दिया गया। ससुराल पक्ष के लोग प्रियंका के दाहसंस्कार के लिए बहुत जल्दी में दिखे। स्थानीय लोगों के आक्रोश के कारण पुलिस सुरक्षा में दाह संस्कार किया गया। प्रियंका के पीहर पक्ष को आशंका है कि प्रियंका की मौत पहले ही हो गई थी-कागजी कार्रवाई में १९ तारीख बताई गई है तथा उनको खबर भी देर से दी गई।
स्थानीय पुलिस प्रशासन की नौतिकता पर भी आरोप लगे है। तातेड़ के अनुसार प्रियंका के ससुराल वालों ने इसे आत्महत्या का रूपक बनाकर पुलिस प्रशासन को धन-बल के द्वारा अपने पक्ष में पहले ही कर लिया था। चूंकि उस वक्त पीहर पक्ष के लोग भावनात्मक रुप से इतने आहत हो गये थे कि कोई भी निर्णय करने की स्थिति में नहीं थे पर २२ मई को प्रियंका के भाई धीरेन्द्र कुमार दुगड़ ने अपनी बहन की रहस्यमय मौत पर अपनी शिकायत हल्दिया के दुर्गाचक थाने में दर्ज कराई जिसमें प्रियंका के पति विकास जैन (छाजेड़), ससुर विमल सिंह जैन (छाजेड़), श्रीमती सज्जन देवी (सास), नवीन जैन (छाजेड़) (जेठ) व श्रीमती शीतल जैन (जेठानी) को आरोपी बतलाया गया है।
इस संपूर्ण घटनाक्रम में ससुराल पक्ष के द्वारा प्रताड़ना रुपयों की मांग व अभद्र व्यवहार तथा स्थानीय पुलिस प्रशासन द्वारा आरोपित व्यक्तियों पर कार्रवाई न करना तथा तेरापंथ समाज के द्वारा घटनाक्रम पर प्रियंका के ससुराल पक्ष पर दंडात्मक कार्रवाई न करके समाज के कुछ लोगों के द्वारा पीड़ित पक्ष पर समझौता करने का दबाव बनाना विशेष सोचनीय लगा है। प्रियंका के अढ़ाई वर्ष का एक बच्चा भी है जो ससुराल पक्ष के लोगों के पास है .... और इसकी सुरक्षा की चिन्ता भी दुगड़ परिवार को बनी हुई है।
फर्स्ट न्यूज कार्यालय ने प्रियंका के ससुराल पक्ष में ससुर व पति के मोबाइल नम्बर पर संपर्क साधा, लेकिन स्विच ऑफ होने की वजह से उनसे बात नहीं हो सकी। दुर्गाचक थाने के प्रभारी श्री प्रमाणिक से सम्पर्क करने पर उन्होंने बताया कि जांच चल रही है। आरोपी फरार है अर्थात वो पुलिस की पकड़ से बाहर है।
इधर, प्रियंका के पीहर पक्ष ने महिला आयोग,भवानी भवन तक अपनी शिकायत पहुंचा दी है- और यह शिकायत राज्य की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी को भी जाने वाली है। प्रियंका के बहनोई राकेश तातेड़ व भाई धीरेन्द्र दुगड़ प्रियंका की मौत के जिम्मेदार लोगों को दण्ड दिलाने के लिए अडिग है। इसके लिए वे हर उस संस्थान का दरवाजा खटखटायेंगे जहां ऐसे मामलों पर संज्ञान लिया जाता हो।
तेरापंथ समाज के कुछ लोगों के द्वारा समझौते के लिहाज से सेटलमेंट की आवाज पर पीड़ा प्रगट करते हुए इन्होंने कहा कि मौत के बदले अपराधियों को दण्ड दिलाने की जगह और कोई समझौता नहीं हो सकता।

वाह रे! तेरापंथ समाज

समाज की एक बेटी की ससुराल में जहर पिलाकर व फिर उसको आत्महत्या का मामला बनाने की कोशिश करने का जघन्य काम किया जाता है तब भी समाज के कुछ सक्रिय और मौजीज लोगों के द्वारा पीड़ित पक्ष (लड़की) के पीहर पक्ष को इस मामले को तूल न देकर आपसी समझौता करने का दबाव बनाते है।

वाह रे समाज! साथ तो पीड़ित पक्ष का देना चाहिए और आरोपी पक्ष के खिलाफ आवाज ऐसी बुलन्द करनी चाहिए कि फिर कोई बहु को मारने की ती दूर बल्कि उसको प्रताड़ित करने की भी कोशिश न करें... पर समाज के कर्णधार जब आरोपियों को संरक्षण देने की कोशिश करते हैं तो इसका अर्थ उनके घरों में भी बहुओं की स्थिति पर सवालिया निशान लग सकता है। जो किसी की बेटी के हत्यारों के लिए पीड़ित पक्ष पर दवाब बना कर समझौता कराने की कोशिश कर सकते हैं इससे साफ है कि उनके मन में संवेदन की अनुभूति नहीं है अर्थात वे आरोपियों का साथ देने वालों की कतार में खड़े है। कोई आश्चर्य नहीं कि कभी उनके घर से भी बहु को मारने व मामले को रफा-दफा करने की घटना घट जायें।

ऐसी बेजा हरकत करने वालों के कुछ नाम मेरे सामने आये है.... मैं उनको अभी प्रकाशित नहीं कर रहा हूं पर उनको आगाह अवश्य कर रहा हूं कि अपनी इन ओछी हरकतों से वे लोग बाज आये अन्यथा समाज के सामने ऐसे काले चेहरों को लाने में मैं संकोच नहीं करुंगा।

मुझे दुःख है कि समाज उन लोगों का वहिष्कार व दबाव नहीं डालता जो बहु पर अत्याचार, प्रताड़ना व दहेज की मांग करके या तो उसे मरने के लिए मजबूर कर देते है या फिर मार कर उसको आत्महत्या का मामला बनाने की कोशिश से भी नहीं चुकते-फिर उसके लिये स्थानीय पुलिस प्रशासन को अपने पक्ष में लेने के लिए दौलत को पानी की तरह क्यूं न बहाना पड़े।

अगर समाज में दम हो तो वो पीड़ित पक्ष के साथ खड़ा होकर अन्यायी को वो सजा दे सकता है-जिससे समाज की गरिमा और उसके होने का अर्थ नजर आये। यह घटना बीदासर की बेटी (प्रियंका) सुपुत्री थानमल दूगड़ व छापर के छाजेड़ परिवार विमल सिंह छाजेड़,(जैन) परिवार में दुर्गाचक हल्दिया मिदनापुर पूर्व में घटी है। घटना को खबर के प्रारुप में प्रकाशित किया गया है-इसकी संपूर्ण जानकारी पाठक खबर को पढ़ कर लेवे।

पाठक वर्ग से अनुरोध है कि ऐसी घटनाओं में अन्याय के पक्ष में खड़े दिखने वाले लोगों की इज्जत उतारने में कोताही न बरते। जो लोग प्रियंका की हत्या के इस मामले को रफा-दफा करने की कोशिश में लगे है वो यह जान ले कि पुलिस प्रशासन को दौलत पर चाहे खरीदा जा सकता हो व आरोपियों के पक्ष में खड़े होकर अपना दोगलापन दिखलाने की कीमत पर उनको भी दौलत का प्रसाद चाहे मिल सकता हो पर वो आत्मा उनको कभी माफ नहीं कर सकती जिसकी जिन्दगी को असमय हत्यारों के द्वारा लील लिया गया हो। हो सकता है कानूनी कार्रवाई को भी अंजाम तक पहुंचाने में समय लगे पर उस आत्मा को अपनी मौत का बदला लेने में समय नहीं लगेगा। ऐसे मामले कई सुने गये है जिनमें मृतात्मा ने अपना प्रतिशोध खुद लिया है। मैं प्रियंका की आत्मा की शांति के लिए भगवान से प्रार्थना करता हूं-पता नहीं क्यों? मुझे लगता है-जो काम वक्त पर प्रशासन व समाज नहीं कर सका वो काम प्रियंका खुद करेगी-इसलिए प्रियंका को मारने व उसके इस मामले को रफा-दफा करने की कुचेष्टा करने वालों के लिए खतरे की घंटी बजती दिख रही है।

जिन लोगों ने अपराध किया है व जो लोग किसी न किसी रूप में अपराधियों के सहयोगी बने है-वक्त की अदालत उनको उनके कर्मों की सजा जरूर देगी पर जिस आंगन की बेटी ससुराल पक्ष के अत्याचारों से पीड़ित होकर मौत के आगोश में समा गई है उस पीड़ित परिवार के लिए समाज की भूमिका क्या रही है? क्या इसे ही समाज कहते है?क्या रिश्ते-नाते और अपने स्वार्थ इतने हावी हो गये है कि पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाने की बजाय उसे समझौता करने के लिए दबाव दिया जाये।

समाज के प्रबुद्ध वर्ग से मेरा निवेदन है कि पीड़ित पक्ष से सम्पर्क कर उन लोगों को चिन्हित करे जो समझौते रूपी दलाली की कोशिश कर रहे थे और इन लोगों को समाज के खुले मंच पर खड़ा करके कड़ी फटकार लगाई जाये ताकि ऐसी दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो सके। मैं अपने इस संपादकीय के माध्यम से अपने कलम धर्म के साथ सामाजिक दायित्व का पालन कर रहा हूं-अगर समाज रूपी संगठन में कहीं दायित्व बोध की भावना बची है तो वो अपनी उपस्थिति दर्शावे अन्यथा समाज रूपी यह संस्था पाकेटी संस्था का ही रुपक लगेगी-जिसको स्वीकार नहीं किया जायेगा।

मैं आरोपी पक्ष के उन रिश्तेदारों को धन्यवाद देना चाहूंगा जिन्होंने पीड़ित पक्ष की बात सुनने के बाद आरोपी पक्ष को अपना समर्थन न देने की बात कही और इस घटना के लिए दुःख प्रगट किया।

मानवीयता, रिश्तों-नातों से कहीं अधिक ऊपर होती है। पर अफसोस आजकल समाज रूपी संगठन अपने निहित स्वार्थ व दौलत के हाथ चलता है-इसलिए किसी का कत्ल हो जाता है और समाज "उफ' तक नहीं करता।