Thursday, November 27, 2008

ब्लेकमेल किसे कहते है?

किसी बेबस की आवाज उठाने उसके अधिकार की रक्षा के लिये उसके साथ खड़ा होने पर तथा उठाये आपके सवालो को ब्लेक मेल की संज्ञा अगर दे दी जाय तो जरूरी हो जाता है ""ब्लेकमेल'' की वास्तविक परिभाषा बतलाना। मैंने एक बेबस महिला की करूण कहानी सुनकर संबाधित पक्ष से मिलकर यह कोशिश की थी कि बातचीत से यह मसला सुलझ जाये तथा पीड़ित पक्ष को स्वाभिमान के साथ जीवन जीने का पथ मिल जाये। मैंने उस संबाधित पक्ष से सवालो की कड़ियों के बीच बार बार यह निवेदन भी किया था कि दायित्व बोध की कड़ियों से बंधे इन रिस्तों की कड़वाहट को मै प्रकाशित करना नही चाहता- लेकिन अगर आपने अपनी हठधर्मिता नही छोड़ी तो फिर मजबूर होकर रिश्तों के अमानवीय सच को मुझे लिखना पड़ेगा। उन्होंने भावनाओ को जब तब्बजों नहीं दी तो उस कड़वे सच को मजबूर होकर मुझे लिखना पड़ा। मैने उस संदर्भ को फर्स्ट न्यूज पत्रिका में घटनाक्रमों के आधार पर तीन बार उठाया और उन्होंने इसे ब्लेकमेल की संज्ञा दे दी। आजाद देश में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार सबको है।पर उन शब्दों का प्रयोग फिर भी तब तक नहीं करना चाहिये जिनका अर्थ ही हमको मालुम नही हो। हर प्रोफेशन में नैतिक व अनैतिक कमाई होती है। पत्रकारिता में छापने से अधिक न छापने की शर्त की कमाई का जरिया शार्ट कार्ट सा होता है। जहॅंा किसी के कमजोरी को प्रकाश में न लाने की कीमत ली जाती है उस ब्लेकमेलिग कहते है।अवसर तो ऐसे सबको मिलते है ... पर कुछ लोग फिर भी ऐसे होते है जो पाप की इस कमाई से दूरी रखकर संंघर्ष के पथ पर सफलता की फसल उगाने क े लिये हल जोतते जाते है। इस संघर्ष में भी मजा आता है... और आपको यह अहसास ऊर्जा देता रहता है कि आपने अपने स्त्रोत- शक्ति का सदुपयोग करके उस पक्ष को सहारा देने की कोशिश की है- जो अपने संघर्ष में खुद को नितान्त अकेला महसूस कर रहा था। जब वो पक्ष अपने अधिकार की इस जंग में मजबूत होकर जीत के करीब पहुँच जाता है तब आपको यह लगता है कि शब्द वास्तव में ही ब्रह्म होते है श्रीमान एक मजबूर को मजबूत बनाना, उसके पक्ष को आम जनमानस के बीच में लाना अगर ब्लेकमेलिंग तो यह गुनाह जब तक इस शरीर में सांस है... कलम में प्रवाह है ..मैं करता रहुँगा।यह मेरा जमीर जानता है कि संघर्ष की इस पगडण्डी पर समझौते की पोटली को थामकर मैने कभी कलम नही चलाई। हॉं जिन्होंने मेरे अधिकार व आत्मसम्मान पर ठेस पहुँचाने की कोशिश की वत्त पड़ने पर उनको कलम से ही जबाब दिया ... पर फिर भी किसी को टारगेट नहीं किया।जब किसी ने बेवजह धमकी के लहजे का प्रयोग किया तब उसके बाद की हकीकत इशारों में ही बतला दी और अगर उसने अपने शब्द वापिस लेकर खेद प्रगट कर दिया तो उसे माफ भी कर दिया। बेवजह टकराना मेरा स्वभाव नही है..एक हद तक धैर्य भी रखता हूँ लेकिन जब पानी सर से उपर चला जाये तब लिखना या कहना भी पड़ता है। मैं यह मानता हूँ कि पारिवारिक जीवन में भी कुछ ऐसे प्रसंंग हो जाते है जो सहज या सहनीय नहीं होते। ऐसा भी होता है कि एक छत के नीचे रहकर निभाना मुश्किल हो और जब बात और अधिक बढ़ जाती है.. तो वो रिश्ता ही कचोटने लगता है... और आप मजबूर होकर बोझ बने उन रिश्तों की मोली ही खोल देते है। पर इसका अर्थ यह नही कि आप उन लोगो को प्रताड़ित करने लग जाये या जान बुझकर उनके सामने ऐसी परिस्थितियां ईजाद करें जिससे वो पक्ष दुविधा में पड़ जाये। मानवीयता किसी के आत्मसम्मान व अधिकार के हनन की इजाजत तो नहीं देती। अगर किसी वजह से कोई रिश्ता न रहे .. तो वो गुनाह नही है पर अगर आप उसके बाद की शालीनता व मर्यादा को भंग करते है तो वो बड़ा गुनाह है।जिन्होने मुझ पर ब्लेकमेल का आरोप लगाया उन्होने मेरे निजी जीवन में पारिवारिक पक्ष पर भी सवाल उठाया। मुझे उनके सवाल पर कोई आपत्ति नही है.. क्योकि सवाल उठाने का अधिकार सिर्फ पत्रकार को ही नहीं बल्कि भावना प्रधान हर व्यक्ति को है...पर थोड़ा सा भी सच जाने बिना किसी पर उंगली उठाना उचित नहीं कहा जा सकता। अगर हम अपनों को जी जान से चाहते है.. उनके सुख दुख को अपना मानकर चलते है ..फिर भी कोई अगर आपके उस अहसास को चकनाचुर कर दें तब आप पर क्या बीतती है? यह कैसी विडम्बना है कि बहुत कुछ सहने के बाद भी अगर आप अपना दर्द जब ईश्वर की अदालत में छोड़ देते है... तब भी लोग आपकी इस चुप्पी पर आपका गुनाह देेखने लग जाते है। उन अपनों के खिलाफ हथियार उठाना अर्थात उनकी करनी का जबाब देना उस व्यक्ति के लिये असम्भव सा होता है जो भावना की राह का पथिक हो मैने इस कठिनाई को सहा है ..पर मुझे इस बात का सकून हैकि रिश्ता निभाने में जितनी ईमानदारी मैने रखी ... वो रिश्ता अब न होने के बाद भी उसकी शालीनता को मैने बनाये रखा है। मेरे धैर्य पर फिर भी अगर आघात होता है तो मैं वो हर पत्थर भगवान को नजर कर देता हूँ मैं यह मानता हूँ कि जब भगवान का धीरज खत्म हो जायेगा तब रिश्तों रूपी दूध में पानी मिलाने वालों को उनकी करनी की सजा मिल जायेगी..और सजा वे लोग भी पायेगे जिन्होंने चटखारे लेकर जुगाली ली है तथा बेगुनाह को गुनहगार बतलाने की कोशिश की है। रिश्तों के इस कड़वे सच का कड़वा घूंट जिस व्यक्ति ने स्वयं पिया है...वो इसको मजाक बनाने या कागजी मोल अदा करने की नहीं सोच सकता इसलिये मैंने उस मजबूर महिला के जीवन की कहानी को सुनकर सामने वाले पक्ष से बार बार यह निवेदन किया था कि इसकी ऐसी पुख्ता व्यवस्था कर दे जिससे यह आत्म सम्मान के साथ अपना जीवन जी सके। उस व्यथा को कथा बनाना मेरा इरादा नही था मैं तो सिर्फ समाधान चाहता था। पर जब सारे रास्ते बंद देखे तो फिर शब्द का ब्रह्मास्त्र चलाना पड़ा ..और उसने अपना असर भी दिखाया क्योंकि बाद का बहुत कुछ काम सहृदयी पाठक वर्ग ने कर दिया । उस शब्द (कड़वे सच) से जिसको सहारा मिला उसने दुआये दी और जिनका सच खुल गया उन्होंने इसको ब्लैकमेल कहा। जिसके पास जो था उसने वो दिया मेरे बारे में सवाल उठाये गये थे ं मैने उन सवालो को उनका जवाब दिया है।

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