Saturday, October 1, 2011

नक्षत्रों का चमत्कार है, ममता की कुण्डली

प० बंगाल की मुख्यमंत्री जुझारु नेत्री सुश्री ममता बनर्जी के जन्मांग चक्र के आधार पर विवेचन प्रस्तुत कर रहा हूं- यद्यपि उनके जन्म समय की सटीक जानकारी प्राप्त नहीं हुई पर एक ज्योतिष परिचर्चा के कार्यक्रम में धनु लग्न बताया गया था। इस आधार पर सुश्री बनर्जी का ५.३० बजे प्रातः से ७.०० बजे के बीच में सम्भावित है। मैंने प्रातः ६ बजे के आसपास समय को आधार बनाकर उनके जन्मांग चक्र का विवेचन किया है। जिसमें धनु लग्न में सूर्य-बुध के साथ राहु की उपस्थिति तथा अष्टम स्थान में गुरु वक्रिय अवस्था में स्थित हैं। पराक्रम के भाव में मंगल की उपस्थिति लेकिन षष्ट स्थान में वृषभ का चंद्र स्थित है।
पहली नजर में जन्मांग सघर्ष से सम्मानजनक स्तर पहुंचाने का अंदेशा देता है। लेकिन शनि महादशा धनु लग्न (गुरु ग्रह) के लग्न जातक के सपने को साकार आते ही कर सकती है। यह भविष्यवाणी ममता जी के जन्मांग में अगर नक्षत्रों का अध्ययन न किया जाये-तो नहीं की जा सकती। ममता जी के जन्मांग में नक्षत्रों ने चमत्कार किया है- विशेष रुप से शनि विशाखा नक्षत्र में स्थित होकर लग्न व चतुर्थ जनता के भाव का चमत्कारिक फल दे पाने में सक्षम सिद्ध हुआ है-और जो ग्रह कुंडली का कारक ग्रह गुरु है उसमें अपनी महादशा में राजयोग के साथ राजभंग योग किया है।
ममता जी के जन्मांग में छठे स्थान में बैठा चन्द्रमा जो कि अष्ठम का मालिक है लेकिन नवमेश सूर्य के नक्षत्र में होने से ममता जी संघर्ष के अंधेरे को चीरकर आगे बैठी है। सूर्य बुध के साथ लग्न में राहु की उपस्थिति ममता जी के बुद्धिमता में तुनक मिजाजी स्वभाव व स्वास्थ्य पक्ष में बाधा व सप्तम स्थान में केतु की राहु नक्षत्र में स्थिती दांपत्य जीवन का सुख न देने का कारक बनी है। शनि वाणी और पराक्रम भाव का मालिक होकर लाभ भाव में बैठा है तथा गुरु के नक्षत्र में होने से लग्न व चतुर्थ भाव का अनायास सुखद फल दे रहा है। शनि की लग्न पर पूर्ण दृष्टि है तथा दुसरे स्थान का मालिक होने की वजह से मार्केश भी है- इस लिहाज से स्वास्थ्य पक्ष में बाधा/ दुर्घटना की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
गोचर में जब गुरु मीन राशि में आया था- तब से रायटर्स पर अधिकार का लिफाफा साथ ही ले आया था- क्योंकि उस समय चौथे स्थान जो कि मां के साथ जनता का भी होता है- वहां ममता का जादू सर पर चढ़ने लगा- और शनि की महादशा ने ममता की बरसों प्रतीष्ठित मनोकामना पुरी कर दी।
नवम्बर- से शनि जब तुला राशि में आ जायेगा तो ये ढ़ाई वर्ष तो ममता जी की तूती ही बोलेगी पर जून २०१२ से दिसम्बर २०१२ के बीच का समय स्वास्थ्य व अपने ही लोगों के बीच तनाव का रुपक बन सकता है। यद्यपि लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ेगा पर इस अवधि में तनाव भी बनेगा।सम्भावना है कि ममता जी का अपने साझेदार (कांगे्रस) से अलगाव के बीज पड़ सकते हैं।
९/२/२०१५ से २३/०१/२०१६ के बीच साझेदार से अलगाव की संभावना प्रबल बनेगी।
२०१६ से २०१९ के बीच शुक्र का अन्तर अचानक दुर्घटना का रुपक बन सकता है क्योंकि शुक्र शनि के नक्षत्र में है। और शनि मार्केश भी है। यहां यात्राओं के योग विशेष बन सकते है। स्थान परिवर्तन के आसार भी लगते हैं।
२०१९ से२०२२ का समय ममता जी के लिए गोल्डन में गोल्डन लग रहा है क्योंकि यहां सूर्य/चन्द्रमा/मंगल का अंतर आयेगा- विशेषकर चन्द्रमा और मंगल विशेष अच्छा परिणाम देंगे- सूर्य का परिणाम इतना अच्छा नहीं होगा।
* ममता जी को अपने सुरक्षा तंत्र को मजबूत रखना चाहिए क्योंकि शुक्र, राहु, प्लूटों का सूक्ष्म प्रत्यंतर अचानक किसी दुर्घटना का रुपक बना सकते हैं।
* शनि की इस महादशा अवधि में ममता जी फिर केन्द्र की राजनीति में अहम भूमिका व और उच्च पद को प्राप्त करेगी- ऐसी सम्भावना है।
* ममता जी के अष्टकवर्ग गणित में दशम से एकादशेश में चमत्कारिक बिन्दुओं की संख्या है-संघर्ष से शिखर तक के सफर में इनका विशेष योगदान रहा है।
* ममता जी को अपने परिधान में पीले रंग या लाल रंग का मिलान करना चाहिए।
* अष्टकवर्ग के बिन्दु यह जताते हैं कि ४८ वर्ष से ७२ वर्ष की समय अवधि सर्वश्रेष्ठ होगी अर्थात १ से २४ वर्ष अत्यन्त समान्य २४ से ४८ वर्ष श्रेष्ठ तथा वर्ष से ७२ वर्ष अत्यन्त श्रेष्ठ होगी।
* ममता जी को तजर्नी अंगुली में पुखराज धारण करने की सलाह.
* अपने महत्वपूर्ण कार्य मंगल व गुरुवार को करना श्रेष्ठ होगा।
* मंगल जब-जब गोचर में वृश्चिक व मकर में आयेगा तब-तब पराक्रम में कमजोरी व बाधाजनक परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है- लेकिन वृषभ तुला में मंगल शानदार परिणाम देगा । इसी प्रकार सूर्य मिथुन मकर में विपरीत परिणाम देगा पर तुला में इच्छित परिणाम देगा।
चन्द्रमा, कर्क, तुला व कुंभ में मनःस्थिती व निर्णय को अनुकूल बनायेगा पर सिंह, वृश्चिक व मकर में संचरण तनाव कारक स्थिति बन सकती है।

चुटकी

१.
गृहमंत्री और
वित्तमंत्री
में ठनी
फिर
मनमोहन व सोनिया
के द्वारा
सुलह बनी
तब दोनों एक साथ
प्रेस कान्फ्रेंस में
मित्रवत से आये...
बयान के रुप में
पूर्व लिखित
स्क्रिप्ट सुनाये-
तब पत्रकारों ने
शायद यह सोचा होगा
कि एक पत्र से खबर
भी तूफानी बनती है
और एक स्क्रिप्ट
तब उस खबर को
तमाशा भी कर देती है।
अर्थात २जी स्प्रेकट्रम घोटाले पर
वो पत्र सनसनी
खेज खुलासा था,
या
फिर कॉमेडी-तमाशा था।

२.
गृहमंत्री जी की स्मरण शक्ति व गिनती शक्ति कमजोर है तब भी वो गृहमंत्री है-
क्योंकि प्रधानमंत्री जी
की भी
नैतिक शक्ति
कमजोर है।
इस देश की
ग्रह-स्थिती
कमजोर है
शायद तभी
नाकाम-बेनकाब की कमान से
देश चल रहा है।
व इनके बोझ से
बेवजह दब रहा है।

३.
तिहाड़ के
दिन
फिर गये हैं
राजा-मंत्री
मिल गये है।
भविष्य में
और भी आ सकते हैं।
सम्भावना यह कहती है
प्रधानमंत्रीजी
कैबिनेट की बैठक
तिहाड़ में भी
बुला सकते हैं।

पूछिये सवाल- क्या और क्यों?

वित्तमंत्री और गृहमंत्री के दिलों में २जी स्पेक्ट्रम पर एक पत्र को लेकर आई दरार को पी.एम.ओ व दस जनपथ की सीमेंट माटी ने चाहे लाख पाट दिया हो पर इस देश के१२० करोड़ लोगों के दिलों-दिमाग पर जो एक के बाद एक सियासती प्रहार से दरार-दर-दरार आती गई है- न तो सरकार ने इस दरार के प्रति अपनी जिम्मेदारी को स्वीकारा है और न ही इस दरार को भरने के लिए उसने गम्भीरता दिखाई है।
सरकार के लिए मंत्री और मंत्रियों के लिए सरकार-शेष चाहे रहे बेहाल-अर्थात जनता की महत्ता सिर्फ उस वक्त तक है जब चुनाव का मौसम आये तब राजनीति और राजनेताओं के लिए जनता बहार होती है-और ये भंवरों की तरह मंडराने की और उस वक्त जनता की चप्पल भी सर पर लगा लेने में कोताही नहीं बरतते-उसके बाद जनता रुपी बहार उनको अपने चमन से बाहर ही दिखती है- ये भंवरे फिर सत्ता की बहार की मौज लेने चल देते हैं। राजनीति का चरित्र जब ऐसा है तो राजनेताओं का चाल-चलन कैसा होग? कल्पना में भी कुछ अच्छा चित्रण नहीं उतरता।
ये लोग घोटालों के फूटे घड़ों को ढ़कने की प्रक्रिया जारी रख सकते हैं पर गरीबों के उघड़े तन पर कपड़े ओढ़ाने की ये लोग प्रक्रिया नहीं कर सकते... क्योंकि इनकी आंखोें में वो शर्म नहीं है जो नंगे बदन को ढ़कने की सोच भी सके!
इनके पास करोड़ों-अरबों का अकूत धन है- पर मन है कि मानता ही नहीं... फिर भी गरीबों का निवाला निगलने के लिए व देश की संपदा को विदेशों में रखने से बाज नहीं आते। इन सियासती अमीरों को अपने कर्मों का हिसाब सुद सहित देना पड़ेगा... वक्त आ रहा है.. अब वो जनता के हाथ में सिर्फ अंगुठे से छाप देने के अधिकार के साथ लाठी भी पकड़ा सकता है..अब जनता अपनी लाठी से बेरहम, बेशर्म राजनेता का कॉलर पकड़कर जवाब लेना शुरु कर दे तो आश्चर्य मत कीजिएगा... अब सियासत को जनता के लिए गम्भीर दिखने की आवश्यकता नहीं वरन जनता को अपने अधिकारों के प्रति स्वयं गम्भीर होने की आवश्यकता है- तभी राजनीति के इस दलदल में गिने-चुने कुछ अच्छे लोगों को उनका वास्तविक सम्मान भी मिलेगा और शेष को राजनीति के दंगल से बाहर भी फेंक दिया जायेगा।
राजनीति का शुद्धिकरण होना चाहिए- और लूटेरों सी भूमिका निबाहने वालों की लूट का माल जब्त करके उनको देशनिकाला दे दिया जाना चाहिए! ऐसे गद्दारो के हाथ में देश की कमान तो दूर बल्कि देश में रहने की जगह भी नहीं मिलनी चाहिए!
जनता को अपने जनप्रतिनिधियों व बड़े प्रशासनिक अधिकारियों को हजूर कहने से बाज आना चाहिए- हमने अपने सर्मथन की ताकत से इनको सांसद, विधायक, पार्षद बनाया है- अर्थात इनको बनाने वाले जब स्वयं हम हैं तो ये हजूर कैसे?
मैं यह नहीं कहता कि हम अपने जनप्रतिनिधि को सम्मान न दें- बेशक वे स्नेह, सम्मान के अधिकारी हैं- पर इसके लिए उनकी पात्रता होनी चाहिए। उनका सामन्ती अंदाज हमारे स्नेह-सम्मान के लिए उनकी पात्रता को रद्द कर जाता है। जनता को अपने-अपने क्षेत्र के जनप्रतिनिधि के आचरण-व्यवहार-योग्यता की समीक्षा करनी चाहिए व सवाल भी पूछने शुरु कर देने चाहिए- यहां पर जात-पात-मजहब व पार्टी निष्ठा को परे रख कर जनता को अपना काम शुरु कर देना चाहिेए। आपके सवाल उनकी नींद उड़ा देंगे- और वो आपके दरबार में हाजरी देने खुद आयेंगे... बस आप पूछिये सवाल क्या और क्यों?
अगर कोई जनोपयोगी कार्य नहीं हुआ तो क्यों नहीं हुआ और कोई गलत काम हुआ तो क्यों हुआ?
जिस दिन से आप सवालों की श्रृंखला शुरु कर देंगे तब उनको लगेगा कि जनता जगी हुई है- और उनके कार्यों की समालोचना होनी तय है- तब अच्छे काम करने वाले जनप्रतिनिधि प्रोत्साहित होकर और अच्छा काम करेंगे- और गलत काम करने वाले गलत काम करने से पहले बार-बार सोचेंगे! परिवर्तन की मानसिक प्रक्रिया इस तरह शुरु होगी और उजियाले की फटती पो का नजारा भी दिखेगा- पर इसके लिये जनमानस को जागना होगा-और अपने-अपने क्षेत्र से प्रक्रिया शुरु करनी होगी। आप उनसे सवाल पर सवाल तब तक पूछते रहे जब तक वो आपके सवालों का जवाब देने के लिए बाध्य न हो जाये।

Friday, September 16, 2011

लोकपाल


१.
लोकपाल स्टेडिंग कमेटी
में
लालू व अमर का
पुर्नचयन
यह बताता है कि
जन लोकपाल बिल
में
भ्रष्टाचार को रोकने में
रोड़ा अटकाने के लिए
इनको लाया जाता है।
अमर सिंह
बीमार है-
अभियुक्त है
अंतरिम जमानत पर है
पर इस सरकार की
सबसे बड़ी जरुरत है-
क्योंकि नोट काण्ड में
अमर की हिरासत
सरकार की हरारत है
और जनता के जन लोकपाल पर
सरकार की यह
सियासती शरारत है।
सरकार अपनी सीरत में
सुधार नहीं करेगी-
क्या जनता अब भी
इनमें बदलाव
नहीं करेगी?
२.
भ्रष्टाचार को
खत्म करने वाले
जन लोकपाल बिल
पर
स्टेडिंग कमेटी
में
बैठकर
लालू व अमर
निर्णय का
हिस्सा बनेंगे-
अर्थात भ्रष्टाचार
को
मिटाने
की
कवायद
अब
भ्रष्टाचारी
खुद करेंंगे।
३.
यह सरकार
अपने कर्मों
का
आने वाला फल
समझने लगी है
इसलिये जो खा चुकी है
उसको पचाने में लगी है
और जो
बच गया है-
उसको खाने में लगी है-
यहां खाने और पचाने
का
दौर चल रहा है-
और
जनता का जन लोकपाल
चारे की तरह
स्टेंडिंग कमेटी में टंगा है-
ये लोग
आम आदमी की
रोटी
कप़ड़ा
मकान
को खा चुके हैं
अब
चारा खाने वाले
सरकार को बचाने वाले
स्टेंडिंग कमेटी में
फिर आ चुके हैं।

ममता के लिए सबसे बड़ी चुनौती...

एक प्रतिष्ठित बांग्ला दैनिक में बंगाल के एक जूट उद्योगपति के द्वारा तृणमूल विधायक की शिकायत केन्द्रीय गृहमंत्री को भेजने की खबर प्रकाशित होने के बाद यह सवाल विचारणीय बन गया है कि ममता दीदी की क्लीन छवि पर उनके अपने ही लोग अपने निहित स्वार्थों की वजह से कोई दाग तो नहीं लगा रहे? प्रकाशित खबर आधारित रुप से कितनी सच्ची है? यह तो वक्त बतलायेगा-लेकिन ममता दीदी के लिए बंगाल के विकास का प्रयास जितना गम्भीर है उससे अधिक गम्भीर बात अपनी सरकार के लोगों व कर्मियों को पूर्ण नियंत्रण में रखने की है-फिर वो चाहे विधायक, सांसद, पार्षद या फिर अपने क्षेत्र में पार्टी के संपादक क्यों न हो?
अगर आम जनता के बीच इन लोगों की नेतागिरी-गुण्डागर्दी का रुपक बनकर किसी भी रुप में आती है तो इसका सीधा प्रभाव ममता जी की छवी पर पड़ेगा। देखने की बात यह भी है-कितने जनप्रतिनिधि ऐसे हैं जो उद्योगपतियों के उद्योगों में अप्रत्यक्ष रुप से हिस्सेदार बनकर उन उद्योगपतियों के हितार्थ काम कर रहे हैं। बात साफ है कि कोई उद्योगपति अगर नेता को प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष हिस्सा देगा तो वह अपने संरक्षण के साथ कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए उस राजनैतिक हस्ती का उपयोग करेगा- यहां पर अपने प्रतिस्पर्धी को पछाड़ने या उसको कसने की स्थिती का प्रयोग भी आश्चर्यप्रद नहीं लगता।
अगर आज भी एक मकान मालिक को अपनी इमारत को ठीक-ठाक व रंग करवाने के लिये क्षेत्रीय नेता की दादागिरी की वजह से गुण्डा टेक्स देना पड़े तो फिर परिवर्तन या बदलाव शब्द सार्थक कैसे लगेगा? यह सवाल वाजिब है कि गणतंत्र में गुण्डई का राजतंत्र जनता को कब तक सहना पड़ेगा? कम से कम बंगाल की जनता के लिए ममता जी को अपनी पार्टी के साथ साझेदार पार्टी के नेताओं व कर्मियों को नैतिक रूप से कसने की कवायद करनी होगी जिससे आम जनता की शिकायत ममता जी तक पहुंच सके- व तुरन्त ठोस कार्रवाई हो जाये कुछ ऐसी व्यवस्था तो बनानी ही होगी तभी आम जनता में अन्याय का विरोध करने की हिम्मत जगेगी और शायद तभी आम जनता के प्रति ममता की ""ममता'' पक्की लगेगी!

Saturday, September 10, 2011

"आप और वे'

वे आतंकवादी है
उनके मन में बारुद है
खून खराबें का जज्बा है
जान हथेली पर रख कर
वो अपना काम कर जाते हैं।
चिदम्बरम जी-आप गृहमंत्री है
आपके पास-
सुरक्षा परियोजनाओं
की फाइलें हैं,
फाइलों में भरे पन्ने हैं।
आप इनको तकिया बनाकर
चैन की नींद सो जाते हैं ।।
आतंकियों के पास जमीर नहीं है
वे निर्दोषों का खून कर जाते हैं.
जमीर आपके पास भी नहीं है-
आप अपनी जवाबदेही से
सीधे मुकर जाते हैं.
पीड़ितों के जख्मों पर
मरहम की जगह-
नमक-मिर्ची लगाते हैं।
जमीर की इस जमीं पर
"आप और वे'
कितने मिलते नजर आते हैं !
जो खून वो करते हैं
वो दिखता है ।
जो खून आप करते हैं,
उससे नैतिकता हर पल मरती है...
वो हम महसूस करते हैं।
वे आतंकी होने का
अपना कर्म निभाते हैं
पर
आप गृहमंत्री होने का
अपना धर्म कहां निभा पाते हैं?

सांसद हो या सामन्त?

जन लोकपाल बिल को संसद के पटल पर रखवाने बाबत गांधीवादी अन्ना हजारे के आन्दोलन के वक्त राजनीति के गलियारों से संसद की महत्ता व उसकी सर्वोच्यता की बयानगी पुरे जोर-शोर से सुनाई दी- पर वे लोग संसद की जड़ को ही भूल गये-क्योंकि संसद में जनता के द्वारा चुने हुये प्रतिनिधि बैठते है-अर्थात आधार जनता ही है- फिर भी जनता के आंन्दोलन को विवादास्पद बनाने की नाकाम कोशिश राजनेताओं ने की-वो यह भूल गये कि सांसद होने का अर्थ क्या है? जनता के प्रतिनिधि होने के नाते सांसद का कर्तव्य जन सेवक के रुप में अपने क्षेत्र की जन समस्या को उठा कर उसको समाधान की प्रक्रिया को बनाना होता है- पर अधिकतर मामलों में सांसद अपने कर्तव्य को छिटका कर सामन्त की भूमिका में नजर आते हैं। खुद को राजा समझने की यह भूल ही जनता को सड़क पर उतरवा देती है- फिर वे लोग (सांसद) संसद की दुहाई देते भागते से दिखते हैं। अन्ना ने जनता को अपनी ताकत का अहसास करवा दिया है अब भी अगर सांसद सामन्ती अंदाज में नजर आते हैं-तो उनकी उल्टी गिनती उनके संसदीय क्षेत्र में जनता के द्वारा तय है- क्योंकि जनता अपने वोट की कीमत ससम्मान लेना चाहती है सांसदों के सामन्ती दरबार में लाईन लगाकर हाथ जोड़कर याचना करना नहीं चाहती!
आने वाले वक्त में सांसदों-विधायकों व पार्षदों को अपने तौर तरीकों में बदलाव करने ही होंगे अन्यथा जनता चेहरों को बदल देगी क्योंकि जनता अब सामन्तवादी अदा देखना नहीं चाहती-उसे अपना प्रतिनिधि चाहिए जो उसकी आह और वाह को समझ सकता हो! आने वाला समय दलवादी राजनीति से ऊपर उठकर व्यक्तिवादी होगा- जनता राजनैतिक दलों को नहीं बल्कि व्यक्तित्व के आंकलन से फैसला लेगी- क्योंकि उम्मीदवार अगर योग्य, नैतिक व जुझारु होगा तो वो जनता के उस वोट की कीमत को तवोज्जों देगा न कि दल के फैसले को- और ऐसे व्यक्ति ही जनता के दिलों-दिमाग पर राज करेंगे!
अन्ना हजारे के आन्दोलन ने जनता को उसके लोकतांत्रिक अधिकारों की शक्ति याद दिला दी है... अब जब जनता जग गई है तो राजनीति को अपनी सूरत व सीरत दोनों बदलनी पड़ेगी
अगर उन्होंने अपना मिजाज नहीं बदला तो जनता अपना रिवाज बदल देगी- और नामी-गिरामी चेहरों की राजनीति से छुट्टी की घोषणा हो जायेगी।
मुझे तो लगता है कि पक्के राजनेता छुट्टी में जाने के बजाय अपने मिजाज को बदलना पसंद करेंगे-क्योंकि आखिरी सांस तक रिटायरमेंट से वो इस क्षेत्र में ही बच सकते है।