Sunday, November 23, 2008

अध्यात्म का अर्थ क्या है ?

जब जब राजनीती के शुद्धिकरण का प्रसंग उठता है तब तब अध्यात्म की दुनिया से राजनेताओ को जोड़ने का समाधान दिया जाता है अर्थात राजनेताओ को अध्यात्मिक होना चाहिए प़र यहाँ दो गंभीर सवालो को समाधान देने वाले नजरंदाज कर जाते है पहला सवाल अध्यात्मिक की परिभाषा से ही है ...क्या वर्तमान में चल रहे धार्मिक मुखोटो के इस विशाल तंत्र को ही हम इसका जबाब मान ले -जोधर्म के नाम पर अर्थ बटोरने का फलता फुलता उधम बना हुआ है और जंहा की हकीकत इतनी कड़वी है जिसका विवेचन अगर सरल शबदो में किया जाए तों ये राजनीति के निम्नतम स्तर के अखाडे ही होते है जहा धर्म की जुबान जरुर बोली जाती है परकर्म के नाम पर अर्थ .शक्ति ,विलास के भोग का किया जाता है तथा इस के जो विरोध में आता है उसे पटकनी देने के लिए राजनीति के ओछे हथकंडे भी इस्तेमाल करने में लेट लतीफी नही होती कुछ अपवादों को छोड़कर अगर इस अध्यात्मिक जगत का ईमानदारी से विवेचन करे तो श्रद्धा की जमीं पर भावना को दोहने का सबसे सफलतम उद्योग ही हमको यह नजर आयगा मेरा किसी संत या धर्म समुदाय पर इशारा नही है .मेरे ये सवाल उन लोगो के लिए नही है जो धर्म व मानवीय मूल्यों को प्रोडक्ट बना कर बेचने में लिप्त नही है ये लोग इस झंडे को उठाने के असली हक़दार है पर बाकि बड़ी जमात तो अध्यातिमकता को फंडे के रूप में ही इस्तमाल कर रही है क्या इनसे किसी सुधिकरण की उम्मीद की जा सकती है ?दूसरा सवाल यहे है की अगर राजनेता अध्यात्मिक नही हो सकते तो क्या दुसरे विकल्प के रूप में इन अध्यात्मिक नेताओ को राजनीति में आने के लिए निवेदन नही किया जा सकता ?राजनेता अगर धार्मिक नही हो सकते तब संतो को राजनीती में शुद्धिकरण के लिए मेली गंगा को साफ करने का जिम्मा लेने में संकोच नही करना चाहिए पर यह काम उन लोगो के लिए भी टेढा है क्योंकि उपदेश देना आसान है पर उस पर ख़ुद को चलाना टेढी खीर होती है

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