Thursday, November 27, 2008
क्या उसे""बूम'' कहते है?
जब विश्व के शेयर बाजार एक के बाद एक पायदान चढ़ते नजर आ रहे थे तथा भारतीय शेयर बाजार का सूचकांक इक्कीस हजार के स्वप्निल आकड़े को पार कर गया था ...तब हर कोई भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती के गीत को गाते हुये इसे ""बूम'' बतला रहा था । पर एक वर्ष की इस अवधि में वो बूम की धुम जाने कहॉ गुम हो गई ? अर्श से फर्श पर अर्थव्यवस्था का प्रतीक शेयर बाजार क्यों आ गया और बूम की उस बयार के बीच मंंदी का तूफान कैसे छा गया -आज यह सवाल आम नागरिक को कचोट रहा है ... आखिर उस सड़क पर हमारी फिसलन की वजह क्या थी ? मै किसी अर्थशास्त्री के वक्तव्य को अपने इस आलेख का हिस्सा नहीं बनाऊंंगा ...क्योंकि अगर उनकी गणित व आकलन में दम होता तो खतरे की इस घंटी का संकेत वो पहले ही दे देते । आसमान में बादल उमड़ने के बाद तो बारिश का आकलन हर कोई कर सकता है -पर तेज धूप में बारिश की अगर कोई भविष्यवाणी करे और फिर पानी बरस जाये तो वास्तविक आकलन कर्ता तो वो ही होता है ।मेरी नजर में अर्थशास्त्रियों की जमात न तो कल यह बता पाई थी कि भविष्य में यह तूफान आने वाला है ।-और न ही इनके पास आज की उलझन का सटीक जवाब है और आने वाला कल केैसे होगा न वो यह बता सकते है -इस लिये मै उनकी और आपका ध्यान ले जाना उचित नही समझता ! कभी-कभी बातचीत में कोई विचार आपकी सोच पर जमी परतों को हटाया हुआ आपको यह समजा देता है कि आप जिस सोच की स्वप्निल दुनिया को अतीत का सच मानकर अब तक उसका बोझ ढो रहे है -दरअसल वो सच तो कभी था ही नही ! कुछ दिन पूर्व महानगर के प्रतिष्ठित ज्वेलरी प्रतिष्ठान नेमीचंद बामलवा एण्ड सन्स में प्रतिष्ठान के निर्देशक बच्छराज बामवाला के साथ एक मुलाकात के दौरान अर्थजगत की इस मंदी के बारे में चर्चा चली तो बातचीत के इस क्रम में श्री बामलवा ने जिस सरल शब्दावली में अर्थव्यवस्था की रूपरेखा को व्याख्ति किया.. उस परिभाषा से कोई असहमत हो ही नही सकता! वर्ष२००७ में जब शेयर बाजार शिखर पर था -क्या तब अर्थव्यवस्था में बूम थी ? श्री बामलवा का जवाब था जब उस वक्त बूम का यह शब्द सुनने को मिलता ... तब मै यह सोचता कि क्या मुकेश अंबानी अगर अपनी पत्नी को हवाई जहाज उपहार में दे या कुछ ओद्यािेगक घराने विदेशी कंपनियों के अधिग्रहण का इतिहास लिख डाले - उससे क्या भारतीय अर्थव्यवस्था का चेहरा इतना चमक जाता है ..कि हम बूम का ही गीत गाने लग जायें । बूम तो तब कहा जा सकता है जब आपके कयालय के चपरासी की आर्थिक स्थिति में सुधार अगर आप आया हुआ देखें -अर्थात सुधार तो जड़ से होना चाहिये ---और वो सबसे पहिले करोड़ोंें की तादात में उस गरीब तबके में दिखना चाहिये । अगर वहॉ की लाइफ स्टाइल में आपको चमक दिख जाये तब समझिये की आपकी अर्थव्यवस्था अब सोना उगलने लगी है । अगर ११५ करोड़ की इस आबादी में चमकने वाले अंगुलियों के पैरों पर गिने जा सके -तो आप इसको अर्थव्यवस्था की मजबूती का गा्रफ नही मान सकते .....पर हमने उस स्वप्न को भी सच माना ....जो सच था ही नही शायद तभी आज उसकी हकीकत का कड़वा स्वाद हमे कुछ अधिक तकलीफ दे रहा है । दरअसल भारत की अर्थव्यवस्था में तब भी वास्तविक बूम नही था जब शेयर बाजार इक्कीस हजार के शिख़र पर था... पर हमने सिर्फ पर्दे के सामने दिखाई जा रही चमक को देखा ...पर्दे के पीछे की वास्तविक हकीकत पर नजर डालना ही भूल गये -और वो भूल ही आज के दर्द की टीस बन कर ""बूम'' का अर्थ पूछती है ।श्री बामलवा अर्थशास्त्री नहीं है इसलिये उनका जवाब आर्थिक परिदृश्य में मानवीय लगता है। और उनके इस विचार को मान्य स्वीकृति मिलती है।े
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