Saturday, January 31, 2009

बस प्राथना ...

मेरे शहर में फ़िर एक हादसा हुआ -एक मासूम का स्कूल की छुट्टी के बाद अपहरण और फ़िर उसकी हत्या करदी गई समूचा शहर गहरे दर्द में डूब गया .पुलिस प्रशासन के खिलाफ लोग सड़क पे उतर आए पर इस आक्रोश से समाधान फ़िर भी नही मिला कलेजे के टुकड़े को खोने का गम वो परिवार कैसे भूल पायेगा .दरिंदगी एक माशुम के चहेरेपर भी नही पिघली --एक बचपन बे मोत मार दिया गया...दर्द इस बात का है की हम उस माशुम के जीवन के लिए कुछ भी नही कर सके .इंसानियत शेतानो के सामने फ़िर असहाय नजर आई,फिरोती का कोई फ़ोन भी नही आया क्योकि पुलिस ने जाल बिछा दिया था ,बदमाश जब अपने उस मकशद में सफल नही हुए तो उन्होंने वो कर दिया जिसको सुन कर संवेदना ख़ुद रो पड़ी क्या पुलिस में जाना और मीडिया में इस केस का जोरदार उठाना उसकी मोत का कारण बन गया ?आखिर क्या किया जाए ....सवाल अत्यन्त गंभीर है इधर कुवा है उधर खाही है आज मेरा शहर इस हादसे को सहकर बहुत दुखी है हमारे हाथ में उस माशुम के जीवन के लिए कुछ भी नही रहा .अब सिर्फ़ प्राथना ही कर सकते है है इश्वर उस माशुम की आत्मा को ममता की छाव देनाऔर माँ के कालजे को पत्थर कर देना नही तो वो नही जी पायेगी कोलकता (हावडा )का वो यश लखोटिया था ब्लोगेर दोस्त उस की आत्मा की शान्ति के लिए जरुर प्राथना करे ..क्योकि संवेदना यह तो कर ही सकती है

संजय सनम

Thursday, January 29, 2009

बेच रहे है ..

कुर्सी की तजबीज में

वो तहजीब बेच रहे है

आजादी के दीवानों की

तकरीर बेच रहे है

सियासत उन्हें क्या मिल गई

जनता के माथे की

वो

लकीर बेच रहे है ।

संजय सनम

Thursday, January 22, 2009

नाम बड़ा दर्शन छोटा

नव वर्ष स्पेशल के इस अंक में उस घटना का उल्लेख मुझे करना पड़ रहा है जिसे मैं करना नहीं चाहता था पर मुझ तक पहुंचे कुछ सवालों और मेरे द्वारा दिये गये जवाबों का सिलसिला कुछ ऐसा बन गया कि फिर उस चर्चा को कड़वे सच के इस स्तंभ में आने से मैं स्वयं नहीं रोक पाया। घटनाक्रम इस प्रकार है...। महानगर की एक अग्रणी सामाजिक संस्था के सेवा कार्य का कार्यक्रम था। समारोह के दिन उस सामाजिक संगठन के सक्रिय कार्यकर्ता व पदाधिकारी ने फोन द्वारा कई वार भावपूर्ण आमंत्रण दिया जिसकी वजह से उपस्थिति दर्ज करानी आवश्यक थी। मैंने उनकी आत्मीयता का मान रखते हुए अपनी हाजरी लगाई तथा मंचस्थ अतिथियों में शुमार हुआ। जैसा कि होता है अतिथियों का स्वागत सत्कार ,उनका वक्तव्य तथा बाद में धन्यवाद ज्ञापन और फिर दूसरे या तीसरे दिन दैनिक अखबारों में खबर! यहां भी ऐसा ही हुआ महानगर के एक अखबार ने उस पूरी खबर में से मेरा नाम पूरी तरह से उड़ा दिया। मुझे आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि फर्स्ट न्यूज के दीपावली स्पेशल के स्ट्रेट ड्राइव में जहां नीति की सेल लगी है को संभवतया उसने अपने ऊपर ले लिया होः अर्थात उस कड़वे सच को पचा नहीं पाये हो।वैसे उस अखबार के संपादकीय विभाग के एक सदस्य ने किसी माध्यम केद्वारा फर्स्ट न्यूज की सह संपादिका को चाय पर आने का आमंत्रण यह प्रलोभन देते हुए दिया था कि अगर वो आये तो (एक और मधुशाला की सीडी जिसमे ंश्रीमती चौधरी की आवाज है) की समीक्षा अच्छे रूप में प्रकाशित की जायेगी। श्रीमती चौधरी ने इस आमंत्रण का जवाब शब्दों में ठोकर मारकर दे दिया तथा साथ ही साथ अपनी मौखिक शिकायत भी संपादकीय विभाग के वरिष्ठ से कर दी। वहां से बाद में कोई जवाब नहीं आया कि ऐसा आशालीन प्रस्ताव देने की हिम्मत कैसे की गयी व शिकायत पर कार्रवाई क्या हुई?श्रीमती चौधरी ने जब यह घटना मुझे बतलाई तो मुझे लगा कि प्रबंधन को अवगत कराना चाहिए। पर श्रीमती चौधरी ने कहा कि मैंने.... को इस अशालीनता की शिकायत कर दी है अगर भविष्य में फिर ऐसा होता है तो बात प्रबंधन तक पहुंचाई जाये। खैर यह बात तो यहां समाप्त हो गयी पर उस अखबार के जो लोग इस घटना से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष जुड़े हुए हैं। उनकी खीज तो समाप्त नहीं हो सकती अतः मेरा नाम उस सामाजिक संस्था के उस कार्यक्रम से उड़ाना मेरी समझ में तो आ गया पर जो लोग वहां उस कार्यक्रम में उपस्थित थे अगर वो थोड़ी सी गंभीरता से गौर करे तो उन्हें अटपटा लग ही सकता है। शायद तभी फोन पर मुझसे यह सवाल हुआ कि उस कार्यक्रम में आप थे॥ पर अमुक... अखबार ने सिर्फ आपको छोड़कर सबका नाम प्रकाशित किया है। अन्य अखबारों में आई खबर में आपका नाम है पर... ।इस अखबार में नहीं है क्यों?अब मैं इस क्यों? का जवाब क्या देता? क्योंकि मेरा नाम छापना ना छापना उस अखबार के उस पृष्ठ का संपादन करने वाले के अधिकार क्षेत्र की बात थी। मैं यह भी मानता हूं कि कई बार भूल से भी नाम छूट जाता है पर मेरे साथ पहिले भी कुछ ऐसा हुआ था। इसलिए मूल का यह जुमला मुझे जम नहीं रहा था पर फिर भी फोन पर प्रश्नकर्ता को मैंने कहा कि शायद भूल हो गयी होगी। पर वो खुद इससे सहमत नहीं हुआ तब मैंने कहा कि हो सकश्रता है उस कार्यक्रम में मेरा वक्तव्य खबर के योग्य नहीं रहा तो तब उसने इसको भी खारिज कर दिया। अब इस प्रश्नकर्ता का सवाल देखिए... सनम जी आपके कोई खुन्नस निकाल रहा है... उसके मन बयान पर संभवतया बीस-तीस सेंकेंड मैं एकदम चूप रहा मुझे कोई जबाव नहीं सुझ रहा था कि मैं उसे इसका क्या जवाब दूं।मेरा सोचना सही है ना सनम जी.. .मुझे चूप देखकर वो फिर बोल पड़ा। मैंने कहा हो सकता है.. अब उसका सवाल था पर क्यों मुझे लगा कि एक जागरुक बौद्धिक पाठक की इस जिज्ञासा का समाधान अब करना चाहिए... इसलिए मैंने उसको आश्वस्त किया कि आप जिस क्यों? का सवाल उठा रहे हैं उसके कारण एक से अधिक हो सकते हैं। अतः फोन पर यह चर्चा संभव नहीं है। आपकी इस जिज्ञासा का समाधान फर्स्ट न्यूज नव वर्ष स्पेशल के कड़वा सच स्तंभ में आपको मिल जायेगा। अब मैं उनको दिया हुआ वादा पूर्ण कर रहा हूं.. जिस दैनिक पत्र का जिक्र उस पाठक ,श्रोता ने फोन पर किया था उस पत्र से मेरी कोई प्रतिस्पर्धा सही मायने में नहीं हैं क्योंकि तलैया की नदी से तुलना नहीं हो सकती। वो पत्रकारिता के हर क्षेत्र में चाहे प्रसार हो, विज्ञापन हो,खबरोंं का संकलन हो, तथा अर्थ में ,टीम सदस्य में अपने परिचय क्षेत्र में सबसे अव्वल है। अर्थात बहुत बड़े हैं पर मन से बड़े छोटे हैं और उनका यह छोटा मन ही पत्रकारिता के इस क्षेत्र को कलुषित कर रहा है।चूकि अखबार उनका है छापने या ना छापने का अधिकार उनका है इसलिए आप हम उनके इस अधिकार के उपयोग या दुरुपयोग पर सिर्फ अपनी बात ही कह सकते हैं और यह अहसास अगर हर पाठक जागरुक होकर गौर करने लग जाये तब शायद इन बड़े लोगों को अपनी छोटी हरकतों को डरकर बंद करना पड़ सकता है। जहां तक मेरे से खुन्नस का सवाल है यह जानने के लिए आपको फर्स्ट न्यूज का दीप स्पेशल का स्ट्रेट ड्राइव पढ़ना होगा।मैं पुनः इस बात पर आना चाहता हूंं कि मैंने कभी किसी को अपना प्रतिस्पर्धी नहीं माना क्योंकि मेरा यह विश्वास है कि व्यर्थ में किसी की आलोचना करने या अटंगी डालकर उसको गिराने की कोशिश करके आप कभी आगे नहीं बढ़ सकते। अगर कोई आगे बढ़ रहा है आपसे श्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहा है तो आप उसकी श्रेष्ठता को पकड़ों व अपने प्रदर्शन में उसकी श्रेष्ठता के उस गुण को मिला दो आपका प्रदर्शन भी स्वतः ही श्रेष्ठ होने लग जायेगा। अगर आप अपने क्षेत्र के किसी प्रगतिशील ब्रांड की गुणवत्ता का सम्मान करना सीख जायेंगे तो फिर प्रतिस्पद्धी नहीं मित्रवत बन जायेंगे। मैं अपनी सीमा,क्षेत्र, स्थिति को भलीभांति समझता हूं पत्रकारिता को इस विशाल सागर में मेरी हस्ती सिर्फ बूंद जैसी ही है इसलिए मैं इस सागर को प्रवाह देने वाली हर धारा को सम्मान करता हूं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि आपको बूंद के स्वाभिमान को ललकारने की इजाजत दे दी जाये। अगर ऐसा होताहै तो मां शारदे की कृपा से एक छोटी सी बूंद पूरे सागर के प्रवाह को भी प्रभावित कर सकती है। क्योंकि बूंद चाहे छोटी हो पर उसकी सैद्धांतिक गरिमा तथाकथित उन धाराओं से भी बहुत बड़ी है। इसलिए उन तथकथित बड़े लोगों से निवेदन है कि अपना सम्मान बचाये अन्यथा आपका यह छोटापन सबके सामने मजाक बन सकता है। जहां तक मेरे नाम का सवाल है कम से कम वो पत्र विशेष अब मेरा नाम न ही छापे तो मैं कृतज्ञ रहूंगा। मुझे दुख है कि चंद लोगों को इस छोटेपन की वजह से उस पत्र विशेष में काम करने वाले अच्छे लोगों पर भी आंच आती है मैं उन सभी पत्रकार मित्रों से क्षमा चाहता हूं पर जिन लोगों ने मेरे खिलाफ कारस्तानी की है व कर रहे हैं उनकी शिकायत अपनी अधिष्ठात्री तक पहुंचा दी है वे लोग सजा पाने के लिए तैयार रहे। यद्यपि ऐसे घटनाक्रमों से अखबार के प्रबंधन अनभिज्ञ होते हैं क्योंकि अंदर में ये सब भी होता है अंडर द टेबिल भी चलता है उनको इसका पता नहीं होता पर इनका सबका दुष्प्रभाव धीरे-धीरे अखबार पर पड़ता है इसलिए अगर वो थोड़ी भीतरी नजर रखेतो अपने ब्रांड की सुरक्षा कर पायेंगे। अन्यथा कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते हैं। अब शायद उन फोन वाले पाठक की जिज्ञासा का समाधान हो गया होगा।

संजय सनम

Thursday, January 15, 2009

फ़िर छेड़खानी ...

भारत की शिकायत
पर
क्या वो (पाक )
सचमुच
करवाई कर
रहा है ...
या फ़िर
दिखावटी आंकडो की
भरपाई कर रहा है ।
क्योंकि
उसका शातिराना अंदाज
अब भी
यह जताता है
की
वो
हमारे जख्मो के साथ
फ़िर
छेड़खानी
कर रहा है
संजय सनम

Saturday, January 10, 2009

सत्यम का असत्यम

फ्राड राजू
से
रात भर
जब पुलिसिया
सवालो की
बोछार हुई
तब
निवेसको की
नींद उडाने
वाले की
रात
ख़राब हुई
पर
आशंका इस बात की भी है
की
जांच का यह खेल
दिखावटी भी
हो सकता है
अपने किए अहसानों
व लुटाये धन
की
बदोलत
यह फ्राड राजू
जेल में भी
कोमल बिछावन
पर चैन की
नींद सो सकता है
अगर सरकार
वास्तव में इसका
समाधान करना चाहे
तो हो सकता है
बस इमानदारी से
नेतावो पर लुटाया
धन अगर
कंपनी के फंड
में वापिस हो सकता है
तो शायद
यह गडा
काफी हद तक
भर सकता है
sanjaysanam

Thursday, January 8, 2009

लाज का पोस्ट मार्टम

दस दरिंदो ने
लूट ली
एकअबला की लाज
और
पुलिस में
फाइल हुई
यह वारदात .
एक गुनाहगार
फटाफट पकडा गया
इधर मुजरिम
मीडिया को
अपनी कालीकरतूत
बेशर्मी से
बयां कर रहा था
उधर नॉएडा पुलिस
लाज रूपी ताले के
टूटने का
चिकित्सीय प्रमाण
मांग रही थी ,
अब सवाल
पुलिसिया जांच पर था
की वो किस तरह
सामने खड़े सबूत
को नजरंदाज कर
जैसे
लाज रूपी लाश
की
पोस्ट मार्टम रिपोर्ट
को ही
सबकुछ मान रही थी ।
क्या लाज के
लुटने का सच
लाज को फिर से
उघाड़ कर
देखने से ही
सत्यापित हो सकता है ?
उस अबला के
हालात
और मुजरिम का
गुनाह कबूलनामा
क्या काफी नहीं होते ?
संजय सनम

Tuesday, January 6, 2009

आपसे ......

शब्दों से शब्दों की जो बात न हुई
बहुत दिन हो गए -
आपसे मुलाकात न हुई
कोई बहाना नही -
न मिलने का
कलम ही शायद
साथ न हुई
में जिस पडाव पर
खड़ा रहा था
वहा
नजरे
दो चार न हुई
मेरी खामोशी का
गुनाहगार कौन है?
आपसे ही तो
शुरूआत नही हुई
संजय सनम

धन्यवाद् दे गया |

पुरे सफर जो तूफान था
जाते -जाते बहार दे गया ।
खूब खटका था ,नजरो में
जाते -जाते खवाब दे गया
इजहार भी न कर सके हम
वो जाते -जाते करार दे गया
हमने तो उसको अलविदा ही कहा
पर वो हमको धन्यवाद दे गया
नव -वर्ष के सफर का
जोश ऐ खुमार दे गया
हम सोचते ही रह गए
वो धीरे से प्यार दे गया
संजय सनम