Saturday, August 13, 2011

फिल्म आरक्षण पर बवाल क्यों?

फिल्म मनोरंजन का माध्यम होती है- लेकिन कुछ फिल्मों की पटकथा जीवन के यर्थाथ को देखकर लिखी जाती है तब वह फिल्म समाज, देश को एक संदेश भी देती है और इसका प्रभाव भी पड़ता है- जैसे थी्र इडियट फिल्म में मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा पद्धति और हमारी मानसिकता के सच को उजागर करते हुए बदलाव की आवश्यकता को पुर-जोर आवाज दी।
प्रकाश झा की आरक्षण रिलीज होने से पहले राजनीति गलियारों में शक की निगाहों पर चढ़ गई और फिल्म के कुछ दृश्य व संवाद आपत्तिजनक बतला कर उसमें परिवर्तन की मांग कर दी गई अन्यथा रिलीज करने पर कुछ प्रदेशों में प्रतिबंधित कर दिया गया।
दरअसल यह विवाद राजनीति की जमीं पर ही हुआ है- क्योंकि इस देश की राजनीति की नाजायज संतान है आरक्षण और अब फिल्म के माध्यम से जब खुल कर पात्र और संवाद के माध्यम से सामने आता दिखा तो राजनीति में हड़कंप मच गया।
ऊंच-नीच की लकीर खिंचने की जिम्मेवार भी राजनीति है और उनकों अपना वोट बैंक बनाने के लिए आरक्षण का कटोरा पकड़ाने वाली भी राजनीति ही है। बड़े जोर-शोर से यह कहां जा रहा है कि आरक्षण को संसद, न्यायालय ने मुहर लगाई है- इसलिये इसे खैरात कहना इनका अपमान होता है- पर इन लोगों से यह पूछा जाना चाहिए कि ऊंच-नीच की दीवार बना कर -निर्बल या असहाय बता कर मानवीयता के जज्बे को दर-किनार करके सियासत के तवे पर रोटी सिकती रहे इसके लिये आरक्षण का इस्तेमाल करना क्या देशहित में उपयोगी हो पाया है? आरक्षण देकर आपने उन लोगों के स्वाभिमान को मारा है और उनके हाथों में बैशाखी पकड़ा दी है- और यह सिर्फ अपने वोट बैंक को फिक्स करने के लिए किया है? क्या यह देश के साथ खिलवाड़ नहीं है? जो सामने होता आया है-उसे आप संसद और कानून की आड़ में नजर अंदाज कर रहे हैं- सिर्फ शब्दों पर जा रहे हैं-यर्थाथ पर पर्दा डाल रहे हैं।
हम यह मानते हैं कि अमीर-गरीब दो वर्ग हैं- इनको जात-पात, धर्म से नहीं देखना चाहिए- लेकिन इस देश की राजनीति ने गरीब रुपी बड़े वर्ग के विशाल वोट बैंक को अपनी जेब में आरक्षित करने के लिए उन्हें आरक्षण दिया-और इसका दुष्प्रभाव यह हुआ कि आधिकांशतः मामलों में योग्यतायें-प्रतिभायें सर्वश्रेष्ठता साबित करने के बाद भी दरवाजे के बाहर खड़े रह गई और अयोग्यता आरक्षण की बैशाखी के सहारे प्रमुख पदों पर चयनित हो गई! इसका दुष्परिणाम देश भुगत रहा है। क्योंकि अगर योग्य व्यक्ति उच्च प्रशासनिक पद पर नहीं रहेंगे तब उस पद की गरिमा कैसे बनी रहेगी?
प्रतिभा अमीर-गरीब को नहीं देखती... वो तो ईश्वर प्रदत्त उपहार है हां उसको निखारने के लिए अगर गरीब तबके को सरकार सुविधा, संसाधन नहीं देकर अर्थात संरक्षण प्रदान नहीं करती और इसके बदले में आरक्षण की बैशाखी देती है तो यहां प्रतिभा, योग्यता के साथ क्रुर मजाक होता है क्या यह गलत नहीं है?
आरक्षण नहीं संरक्षण दीजिए-ऐसी व्यवस्था दीजिए कि हर वर्ग को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उचित संसाधन, सुविधा मिले तथा योग्यता के आधार पर उनका चयन हो।
ऊंच-नीच, जात-पात के आधार पर यह बंटवारा आपत्तिजनक है- क्या ऊंचीं जात के लोग गरीब नहीं होते?
इस देश की सियासत मानसिकता से इतनी गरीब है कि जब तक इसकी सोच में बदलाव नहीं आयेगा तब तक इस देश में समृद्धि नहीं आ पायेगी।
आरक्षण के नाम पर राजनीति ने कुर्सी का आरक्षण किया है इस शब्द पर बहस होनी चाहिए तथा बैशाखी देने वाले इस शब्द का प्रयोग बंद हो ऐसा प्रयास होना चाहिए!
चयन की कसौटी योग्यता ही होनी चाहिए न कि आरक्षण के कोटे। जात-पात के आधार पर भेदभाव का बीज राजनीति ने अंकुरित किया है-और यह पौधा अब उसके जी का जंजाल बन रहा है।
हम सब भारतीयों को एक स्वर से सियासत की काली करतूतों का विरोध करते हुए समान शिक्षा प्रणाली और संसाधन सर्वत्र पहुंचाने का दवाब बनाकर आरक्षण को बंद करने की आवाज बुलंद करनी चाहिए!
यह मसला जो समाज-वर्ग से जोड़ा गया है- इसे राष्ट्र के परिपेक्ष्य में देखना चाहिए।
सरकारे आरक्षण नहीं- शिक्षा के उत्कृष्ट संसाधन गांव तक पहुंचाने को मजबूर हो जाये और वोट बैंक की बत्ती गुल हो जाये- तभी नई रोशनी दिखेगी और समृद्ध भारत बनेगा।...

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