पाकिस्तान ने अपनी बदनीयती एक वारफ़िर आतंकी मामले में पुख्ता सबूत न मिलनेकी बात कह कर दिखा दी है जरदारी जिस तरह से जुबान पलट रहे है उससे यह साफ लगता है की पाक सरकार के हाथ भी मुंबई के घटना क्रम में बेगुनाहगारो के खून से रंगे हुए है_जरदारी के सफ़ेद झूट का फट्टा कपड़ा जिस तरह नवाजशरीफ ने उठाया है उसने पाक की लिपा-पोती की काली करतूत को नग्न कर दिया है पर जो बेशरम होते है वे भला नग्नता से कब डरते है ?बेशर्म जरदारी अब भी आँख मिचोली कर रहे है इन हालातो में हमारी चुपी हमारे मिजाज पर भी सवाल उठा सकती है क्योकि इतना कुछ भोगने के बाद भी हम प्यार की बात कर रहे है शैतानोके सामने सदभावनाकी बिन बजाना हमारी बुद्धि पर सवाल उठा रहा है_कभी कभी तो एसा भी लगता है की हमरा बहु बल शायद कमजोर इतना पड़ गया है की हम अपनी सुरक्षा के लिए भी खड़े नही हो पा रहे है आख़िर हमारी सहनशीलता की इस हदकी वजह और क्या है?क्यो नही हम खडग अब उठा लेते ?हम उसके अंदाज को क्यो नही समझ पा रहे है?
गिरगिट की तरह वो रंग बदल रहे है
शब्दों के वो अर्थ बदल रहे है
झूटी उसकी हर धड़कन
फ़िर क्यो हम ?
उसकी नब्ज पकड़ रहे है
हमारी यह मानसिकता हमसे ही सवाल ker रही है कीहम क्यो नही उसके नापाक हाथो को अपनी जमीन पर बारूद फैकने के लिए नही रोक पा रहे ,सिर्फ़ विरोध प्रकट करने या विश्वा मंच को बतला ने से अगर समस्या सुलझ जाती तो अब तक हमको अपने जख्मो को दिखाना न पड़ता पर हमारी खामोशी ही हमारा जब गुनाह बन गई हैतभी तो उसकी बदमाशी हम पर कहर मचा रही है आज आवश्यकता तो इस बात की है की हम पाक को यह संदेसा भेज दे की-
तेरी सीमा पर
अब गुब्बार उठने वाला है
ऐ पाक
तेरी मस्तानी को
चूर -चूर करने
अब हिंद
आगे बढ़ने वाला है
विश्वा मंच को भी हम अपना संदेश दे दे -
मत कीजियेगा फ़िर
आप हमसे शिकायत
हमने तो रखी थी
मुद्दतो तक शराफत
अब उसको दिखलाते है
होती कैसी है क़यामत ?
कल में नुक्ता-चीनी के ब्लोगर के उदार भावःआतंकी कसाब के लिए पढ़ कर दंग रह गया,मानवाधिकार की बात हमशा पिडीत के लिए ही उठनी चाहिए -उसके लिए कभी नही जो निर्दोषों के कत्ल का गुनहगार हो जिसके हाथ खून से रंगे हुए है फ़िर भी अगर हम उसके प्रति सहानुभूति की बात केरे तो यह उन लोगो के लिए अन्याय होगा जो इन वहशी तत्वों के शिकार हो चुके है वैसे भी पागल कुत्तो के साथ कोई रियायत नही बरती जाती क्योकि वो रियायत का महत्व नही समझते में मानवीय संवेदना को स्वीकार करता हूँ पर इतनी अधिक भावुकता पर अपना विरोध प्रकट करता हूँ
संजय सनम
2 comments:
गिरगिट की तरह वो रंग बदल रहे है
शब्दों के वो अर्थ बदल रहे है
झूटी उसकी हर धड़कन
फ़िर क्यो हम ?
उसकी नब्ज पकड़ रहे है
एक अति उत्तम रचना से आपने परीचित कराया है!... यथार्थ भी यही है!...धन्यवाद!
bahut sahi shabdo mein aapne bhaavnao ko vyakt kiya hai.. yah aarkosh zaroori hai taaki koi hame kamzor na samjhe. ham chaahe to bahut kuch kar sakte hain, bas kadam uthane ki der hai..
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