Friday, September 16, 2011

ममता के लिए सबसे बड़ी चुनौती...

एक प्रतिष्ठित बांग्ला दैनिक में बंगाल के एक जूट उद्योगपति के द्वारा तृणमूल विधायक की शिकायत केन्द्रीय गृहमंत्री को भेजने की खबर प्रकाशित होने के बाद यह सवाल विचारणीय बन गया है कि ममता दीदी की क्लीन छवि पर उनके अपने ही लोग अपने निहित स्वार्थों की वजह से कोई दाग तो नहीं लगा रहे? प्रकाशित खबर आधारित रुप से कितनी सच्ची है? यह तो वक्त बतलायेगा-लेकिन ममता दीदी के लिए बंगाल के विकास का प्रयास जितना गम्भीर है उससे अधिक गम्भीर बात अपनी सरकार के लोगों व कर्मियों को पूर्ण नियंत्रण में रखने की है-फिर वो चाहे विधायक, सांसद, पार्षद या फिर अपने क्षेत्र में पार्टी के संपादक क्यों न हो?
अगर आम जनता के बीच इन लोगों की नेतागिरी-गुण्डागर्दी का रुपक बनकर किसी भी रुप में आती है तो इसका सीधा प्रभाव ममता जी की छवी पर पड़ेगा। देखने की बात यह भी है-कितने जनप्रतिनिधि ऐसे हैं जो उद्योगपतियों के उद्योगों में अप्रत्यक्ष रुप से हिस्सेदार बनकर उन उद्योगपतियों के हितार्थ काम कर रहे हैं। बात साफ है कि कोई उद्योगपति अगर नेता को प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष हिस्सा देगा तो वह अपने संरक्षण के साथ कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए उस राजनैतिक हस्ती का उपयोग करेगा- यहां पर अपने प्रतिस्पर्धी को पछाड़ने या उसको कसने की स्थिती का प्रयोग भी आश्चर्यप्रद नहीं लगता।
अगर आज भी एक मकान मालिक को अपनी इमारत को ठीक-ठाक व रंग करवाने के लिये क्षेत्रीय नेता की दादागिरी की वजह से गुण्डा टेक्स देना पड़े तो फिर परिवर्तन या बदलाव शब्द सार्थक कैसे लगेगा? यह सवाल वाजिब है कि गणतंत्र में गुण्डई का राजतंत्र जनता को कब तक सहना पड़ेगा? कम से कम बंगाल की जनता के लिए ममता जी को अपनी पार्टी के साथ साझेदार पार्टी के नेताओं व कर्मियों को नैतिक रूप से कसने की कवायद करनी होगी जिससे आम जनता की शिकायत ममता जी तक पहुंच सके- व तुरन्त ठोस कार्रवाई हो जाये कुछ ऐसी व्यवस्था तो बनानी ही होगी तभी आम जनता में अन्याय का विरोध करने की हिम्मत जगेगी और शायद तभी आम जनता के प्रति ममता की ""ममता'' पक्की लगेगी!

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