Wednesday, July 27, 2011

""सलाम बांग्ला-सलाम ममता''

पं० बंगाल ब्रिगेड रैलियों, चक्का जाम, अचल सड़कों व रैलियों की वजह से जन सामान्य की परेशानी को नजरंदाज करने वाली राजनीति व प्रशासनिक अव्यवस्थता के नाम से अपनी खासी पहचान रखता आया है- यहां की जनता के लिए ब्रिगेड रैलियों का अर्थ बी-ग्रेड हो गया था क्योंकि इन रैलियों में अधिकतर बाहरी किराये की वो भीड़ देखी जाती थी जो मैदान को भरने के लिए बुलाई जाती थी- और प्रशासनिक व्यवस्था भी तब चरमरा जाती थी- फलस्वरूप कई बार मानवीयता भी आहत होती थी- जैसे भीड़ के रास्ते में बीमार मरीज को उपचार के लिए ले जाने वाली एम्बुलेंस फंस गई और समय पर अस्पताल न पहुंचाने से मरीज की मौत हो गई... शायद इसलिए बिग्रेड रैलियां आम जनता के लिए बी-ग्रेड सी हो गई थी।
पर गुरुवार को बिग्रेड ने न सिर्फ अपने नाम की गरिमा दिखाई वरन् आम जनता के मन की उस पुरानी परिभाषा को भी बदल दिया अगर मुखिया नेक, ईमानदार, शालीन, अनुशासित हो तो फिर उसके कार्यकर्ताओं को भी ऐसा ही बनना होता है- क्योंकि उनकों जो बार-बार बताया जाये फिर आचरण में वो आता ही है। शायद इसलिये गुरुवार को बिग्रेड का नजारा अभूतपूर्व था। वास्तव में यह असली ब्रिगेड थी- क्योंकि यहां किराये की भीड़ नहीं थी- अपने दिल की आवाज पर दीवानगी के अहसास को लेकर लाखों लोग आये थे.... इस भीड़ ने यह बताया था कि अगर कोई जनता के लिए र्ईमानदारी से काम करता है तो जनता उसके लिए सैकड़ों मिलों से सफर करके बारिश में भींगकर उसके बुलावे पर हाजिर हो जाती है।
ब्रिगेड की यह रैली तमाशा नहीं थी बल्कि आंखों को मुग्ध करने वाला नजारा थी। ममता बनर्जी राजनीति और नेताओं के लिए सीखने वाला पाठ बन रही है- कि वास्तव में नेता, सरकार, प्रशासन कैसा होना चाहिए?
महानगर में शायद पहली बार जनसमुद्र का इतना शैलाब देखा गया था और बावजूद इसके सड़के जाम नहीं थी- सड़क परिवहन अन्य दिनों की तुलना में भी बेहतर था- अर्थात आम जनता को कहीं परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा।
ममता की दूरदर्शिता की जितनी तारीफ की जाये वो कम लगेगी क्योंकि भीड़ को नियंत्रित करने व शालीनता से गंतव्य तक जाने तथा प्रशासन को चुस्त रखने व कार्यकर्ताओं से सही रूप से काम लेने अर्थात सभी के तरफ से व्यवस्था को जीवंत रूप से बनाये रखने की अद्भुत शैली ममता जी ने दिखलाई है। एक कहावत याद आ रही है... उदय होता सूर्य अपना तेज बता देता है... ममता की कार्यशैली इस कहावत को चरितार्थ कर रही है। बंगाल में ममता के रूप में एक नया सूर्य प्रकाश की यात्रा में निकल चुका है... अर्थात अंधेरों को अब जाना ही होगा- बंगाल के स्वर्णिम युग की शुरुआत हो चुकी है।
""सलाम बांग्ला-सलाम ममता''
सरकार इसे कहते हैं
आदर्श बन रही है ममता
बंगाल के स्वर्णिम काल की शुरूआत
भीड़ तमाशा नहीं -नजारा थी
प्रशासन था जिंदा-सड़के नहीं थी जाम

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