Saturday, July 2, 2011

""सधे कदमों से चल रहे है अन्ना''

कभी-कभी बहुत तेज चलना और लक्ष्य को सामने खुद आता देखकर अति आत्मविश्वास के साथ छलांग लगाना बहुत खतरनाक होता है। बाबा रामदेव का प्रसंग अन्ना हजारे के लिए सबक बन गया है- और वे इसको बहुत गंभीरता के साथ लेकर उस पर सही अमल करते हुए दिख रहे हैं।

अन्ना और बाबा रामदेव का लक्ष्य एक ही है-पर शैली काफी अलग है, इन दोनों का व्यक्तित्व और जनता तक पहुंचने का तरीका भी अलग है। पर दोनों में एक फर्क है... बाबा को नया-नया प्रसिद्धी का स्वाद मिला है और सियासी गोटियों के चक्रव्यूह में घुसकर निकलने की जानकारी नहीं है। बाबा रामदेव चूंकि योग सिखाते हैं-इसलिए बोलने की आदत अधिक है अधिक बोलना कई बार गले की घंटी बन जाता है- नाप-तौल कर बोलने वाले की बात का वजन होता है क्योंकि लोग उसके व्यक्तव्य को गंभीरता से लेते है-इस प्रकार यहां भी अन्ना, बाबा रामदेव से अलग नजर आते हैं। एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल है टीम का-यहां अन्ना बाबा रामदेव से खासे आगे हैं क्योंकि अन्ना के पास जो तिकड़ी भूषण,बेदी, केजरीवाल की है वो सरकार को बोल्ड करने का हुनर रखती है।

अन्ना के कदम हर राजनीतिक दल के दरवाजे तक जा रहे है-और वे अपना पक्ष समझाकर उनकी मंशा को सीधे जान रहे है- अब अगर भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए सशक्त लोकपाल का विरोध किस अंदाज में कोई करता है-यह राज अन्ना की टीम का जानना आगे की रणनीति में इनके लिए अस्त्र के रूप में काम करेगा।

एक खास बात यह है कि भीड़ में बोलना व अकेले में बोलने में फर्क होता है। राजनैतिक दलों के लिए अकेले में अन्ना की टीम के सामने मजबूत लोकपाल का विरोध करना मुश्किल बात होगी।

लोहा ही लोहे को काटता है-बिल्कुल इसी तर्ज पर चल रहे है ""अन्ना'' और सियासत खुद अपने ही बनाये चक्रव्यूह में फंस जाये तो कोई आश्चर्य नहीं। सियासत गला फाड़ कर कह रही है कि संसद सर्वोच्च है क्योंकि यहां जनता के चुने प्रतिनिधि फैसला लेते है... ये लोग जड़ को भूलकर पत्तों को सर्वोच्च बतला रहे है- जड़ तो जनता है-इस लिहाज से सर्वोच्च जनता है....और जनता का विश्वास सियासत से जब उठ गया है तब वो सशक्त लोकपाल चाहती है। अन्ना और उनकी टीम को इस देश की जनता का समर्थन मिल रहा है तब भी सियासत लोकपाल के मुद्दे पर सकपका रही है।

अंधेरी रात के बाद भोर आती है... प्रकृति के इस नियम को कौन रोक सकता है? भारत की जनता सियासत में उजास चाहती है... सियासत को अपना कर्म, चाल-चलन बदलना होगा- अन्यथा वक्त आने पर जनता बदल देगी।

No comments: