Saturday, May 28, 2011

कहीं नायक फिल्म का ट्रेलर तो नहीं!

जब से ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी सम्हाली है तब से औचक निरीक्षण उनका हिस्सा बन गया है। यह प्रक्रिया अब सरकारी कार्यालयों में कसावट का संकेत बन सकती है-जाने कब मुख्यमंत्री साहिबा का काफीला आ जाये। पर इन औचक निरीक्षणों पर दूसरी प्रतिक्रिया भी आ रही है-उसके आधार पर मुख्यमंत्री को हर दिन की दिनचर्चा के रूप में इसको न लेकर हर विभाग के विशेषज्ञों की ऐसी टीम बनाकर उनको औचक निरीक्षण की जवाबदेही देनी चाहिए और फिर उनसे मिली रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करनी चाहिए। क्योंकि ममता जी जब स्वयं औचक निरीक्षण पर जाती है तो उनके काफिले के साथ फिर आम लोगों की भीड़ भी जुट जाती है- और यह भीड़ फिर उस संस्थान की गतिविधी में बाधक बन जाती है-जैसे मेडिकल विभाग में यह नजारा मरीजों की उपचार प्रक्रिया में उस वक्त बाधक बन सकता है। इसलिए भविष्य का सुधार तात्कालिक रूप से स्थिति को गंभीर बना देता है।

बेशक ममता जी, बंगाल की स्थिति को सुधारने के लिये फिल्म नायक की तर्ज पर काम कर रही है- पर फिल्म और यथार्थ में बहुत फर्क होता है इसलिए औचक निरीक्षण के लिये सुयोग्य ईमानदार अलग-अलग क्षेत्र के विशेषज्ञों का दस्ता तैयार करवाये और उनसे यह कार्रवाई करवायें।

ममता जी की स्वयं की सुरक्षा के लिये भी यह आवश्यक है कि वो जनता के बीच तो जाये पर भीड़ का हिस्सा न बने। जनता दरबार के माध्यम से वो आम जनता से सम्पर्क में रहने की अपनी इच्छा को पूरा कर सकती है तथा उनकी सुरक्षा का तंत्र भी तनाव रहित रह सकता है।

कुल मिलाकर ममता जी को बहुत तेज चलने की बजाय सधे कदमों से अपने लक्ष्य को योग्य अधिकारियों के हाथों में सौंप कर चलना चाहिए। उनका अधिक थकना व अधिक तनाव में होना प्रदेश के मुखिया के रूप में प्रदेश के लिए अच्छा नहीं हो सकता... इसलिए ममता जी को नायक फिल्म के नायक की तरह जल्दबाजी नहीं करनी है क्योंकि उसके पास तो सिर्फ चौबीस घंटे का समय था, आपके पास तो पांच वर्ष का समय है-इसलिए असली नायक की भूमिका दिखानी है... नायक फिल्म का ट्रेलर नहीं।

No comments: