Saturday, May 21, 2011

""ममता'' मिसाल बनी है

अगर इरादे नेक हो, हौसले बुलाद हो ... और आँखों में अपनी महत्वाकांक्षा का सपना हो.... तब वो पथिक संघर्ष की तपती राहों में हार कहां मानते है.... झंझावतों से टकराते टकराते वो खुद तूफान हो जाते है और एक दिन अपने ख्बावों की मंजिल पर कामयाबी का हस्ताक्षर करने में कामयाब हो जाते है... ममता की ताजपोशी के पीछे उनका वर्षों का संघर्ष था आत्मसम्मान पर चोट थी.. १८ वर्ष पूर्व इसी राइटर्स की इमारत से उन्हें अपमानित करते हुए निकाला गया था... जिस इमारत ने कल उनके लिए पलक पावड़े बिछा रखे थे।

यह सच है कि वक्त बदलता है तो जमाने की अदायें बदल जाती है पर वक्त का यह अंदाज तो उनके लिये ही बदलता है जो अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए तूफानों के थपेड़ों से अपने इरादें नहीं बदलते.... ममता बनर्जी ऐसी ही मिसालों में बेमिसाल कही जा सकती है। अगर १८ वर्ष पूर्व इसी राइटर्स बिल्डिंग में ममता को धक्के मारकर अपमानित न किया होता और ममता ने रायटर्स में तब तक पैर घरने की कसम न खाई होती जब तक वो जन समर्थन का अधिकार पत्र न ले ले तो शायद कल (२० मई) का दिन इस रूप में आया न होता। १८ वर्ष पूर्व आत्मसम्मान में हुई चोट ने ममता के इरादों को हिमालय कर दिया और उस सौगंध ने २०मई २०११ के इस दिन की नींव का पहला पत्थर लगा दिया- जिसकी इमारत २० मई को अपनी भव्यता के साथ तैयार हो गई।

आत्मसम्मान पर चोट क्रांति का रूपक बना सकती है-और उसका जवाब देने की हसरत में उसके कदमों पर पंख लगा देती है। ममता बनर्जी की जीत के राजनैतिक मायने चाहे कुछ भी हो पर वास्तव में यह बुलन्द इरादों की जीत है।

यह जीत यह बताती है कि महिला अबला नहीं सबला भी होती है और अपने दम पर इतिहास में क्रांति और बदलाव का स्वर्णिम पृष्ठ जोड़ देती है।

ममता जी ने इस देश की महिला शक्ति का गौरव बढ़ाया है और उनके लिए आदर्श बन गई है।

शपथ ग्रहण समारोह के बाद राजभवन से राइटर्स तक जन सैलाब के साथ जिस अंदाज में पहुंचकर उन्होंने अपनी जिम्मेदारी सम्हाली है यह दृश्य आम जनता की आंखों में सपने और बिछा गया है।

ममता ने अपनी मंजिल पर पहुंचकर बंगाल की जनता के सपने जगा दिये है- अब बहुत बड़ी जिम्मेदारी उन पर है... हालातों की विषमताओं से संघर्ष करके विकास के फूल खिलाने का उनका सफर शुरू हो गया है। इस सफर की सफलता के लिए हम अपनी शुभकामनाएं देते हैं- उनका यह सफर सुखद, सफल, मंगलमय हो।

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