Friday, May 6, 2011

क्या इतने नपुंसक हो गये हैं हम?

अमेरिका ने अपने लक्ष्य को १० वर्षों की कड़ी मशक्कत के बाद हासिल कर लिया और इसके लिए उसने किसी को पूछा तक नहीं.... क्योंकि उसके मन में अपने लक्ष्य को हासिल करने का जज्बा था.. इसलिए वो अफगानिस्तान के रेतीले-पहाड़ी इलाकों में लादेन को खोजने में थका नहीं और जब उसको पक्की खबर लगी तो रात के अंधेरे में पाकिस्तान से बिना पूछे उसकी जमीं में घुसकर लादने को खत्म करके उसके नश्वर शरीर तक को उठा ले गया और अरब सागर में दफना दिया। अगर आतंक के समाधान की बात करे तो यह घटना उसके खात्मे का समाधान नहीं है- पर देश की संप्रभुता और उसकी सुरक्षा पर विचार करे तो अमेरिका ने अपने देश पर हुए हमले का जवाब दिया है। अब हम अपने देश की इससे तुलना करे- तो शायद हम मनोबल , सैन्यबल व आस-पास की परिस्थितयों से कमजोर नजर आते है इसलिए हम ईंट का जवाब पत्थर से तुरंत कभी नहीं दे पाये हैं -और हमारी इस नीतिगत कमजोरी की कीमत हमको चुकानी पड़ रही है।

मुझे लगता है कि सरकार की मनोस्थिति इस मामले पर कभी आक्रामक नहीं रही.... क्योंकि राजनीति व सरकार बचाने की जुगत में ही समय लग जाता है तब देश के स्वाभिमान व उस पर हुये आघात का अमेरिका जैसा जवाब देने का न तो इनके पास वक्त रहता है और न ही इनके मन में जज्बा रहता है।

हमारे आकाओं को गाल पर थप्पड़ खाकर फिर सहलाने की ही आदत पड़ी हुई है ... ये अपनी राजनीति को किसी भी कीमत पर जोखिम में नहीं डाल सकते-इसलिए पड़ोसी देश आतंकियों की शरण स्थली बना हुआ है और जब-तब धमाकों की थप्पड़ वो हमको देता रहता है- अब तो हालात इतने गंभीर है कि किसी के दिलेर कारनामें को देखकर भी हमारे लहू में उबाल नहीं आता । नेस्तनाबुंद करने की उड़ान भरने का हौसला तो दूर- हमारे आकाओं की जुबान से तो धमाकेदार बयान भी नहीं आता...

क्या इतने नपुंसक हो गये हैं हम?

No comments: