Tuesday, March 10, 2009

कहां खो गई है मानवीयता?

सवाल हर क्षेत्र से किसी न किसी रूप में तब उठता दिखता है जब वहां किसी का शोषण, उत्पीड़न या फिर दौलत की चाह में मानवीयता के उसूलों को भूलकर सामने वाले की मजबूरी का दोहन किया जाता है।चिकित्सा के क्षेत्र में नर्सिंग होम से लेकर नामी अस्पतालों व नामी गिरामी डाक्टरों के द्वारा अमानवीयता की हद पार कर जाने की घटनाएं सुनने को मिलती है। यह सच है कि मरीज और उसके परिजनों के लिए इलाज करने वाला डाक्टर भगवान स्वरूप ही होता है और अगर वो बेवजह मरीज को उलझा कर रुपये ऐंठता चला जाये तो फिर वो भगवान नहीं हैवान होता है। इसी प्रकार मरे हुए मरीज को वेन्टीलेटर पर रखकर चार्ज उगाहने की घटनाएं भी सुनने को मिलती है। इन सब घटनाओं की वजह से कई वार अच्छे डाक्टर व नर्सिंग होम के संचालक लोगों के आक्रोश व उनके प्रति गलत भावना के शिकार हो जाते हैं। फिर कई घटनाएं ऐसी होती है जब मरीज के परिजन डाक्टर व नर्सिंग होम को उसकी जायज फीस व शुल्क तक नहीं चुकाते व हो हल्ला, बदमाशी पर उतर आते हैं।यह भी तो अमानवीय है।नाजायज कहीं भी हो वो गलत है पर जायज भी अगर हम नहीं दे तब फिर वो नैतिक आदमी खुद को कितना और कब तक नैतिक रखेगा? हम यह क्यों भूल जाते हैं कि डाक्टर के हाथ में जिंदगी या मौत पर नियंत्रण नहीं है वो अपनी चिकित्सीय ज्ञान क्षमता के आधार पर मरीज को स्वस्थ करने की जिम्मेदारी निभाता है। इसमें सफलता या असफलता जो मिलती है। वो ईश्वरीय शक्ति के अधीन होती है। अगर मरीज स्वस्थ होकर नर्सिंग होम से निकलता है तब उसके परिजन नर्सिंग होम के बिल में डिस्काउन्ट की बात करने लग जाते हैं और अगर मरीज नहीं बचता तब उसके परिजन बिल न चुकाकर अगर गाली-गलौज, हुड़दंग पर उतर आये तब मानवीयता का जनाजा ही उठ जाता है। क्या यह उचित है कि हम किसी की मेहनत की कमाई का हक मार दे। हम यह क्यों भूल जाते है कि डाक्टर, नर्सिंग होम चलाने वालों का भी परिवार है उनके भी खर्चे है वो ये सब प्रोफोशनल कर रहे हैं। डाक्टर बनने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत व अध्ययन की फीस चुकाई है वो भी अपने परिवार को भौतिक सुख समृद्धि प्रदान करने की महत्वाकांक्षा रखते हैं।फिर उनकी जायज फीस चुकाने व नर्सिंग होम का बिल चुकाने पर हो-हल्ला क्यों?जरा सोचिए कि आपकी दुकान में आकर अगर कोई ग्राहक समान देखकर आपसे पैक करवा कर अपने बैग में डालकर उसका मूल्य चुकाये बिना चलता बने तब आपको कैसा लगेगा? क्या आप इसे सहन कर पायेगे? नहीं ना... तब फिर हम इनका जायज हक क्यों मारना चाहते हैं? विरोध वहां होना चाहिए जहां आपके साथ सामने वाला पक्ष दगाबाजी कर रहो हो वहां उस व्यवस्था व व्यवस्थापकों के चेहरोंं से नकाब जरूर उतारी जानी चाहिए। लेकिन इलाज करवा कर झूठी तोहमत से अपना पैसा बचाने की अनैतिकता तो नहीं करनी चाहिए। इससे पूर्व मैंने चिकित्सा क्षेत्र की अव्यवस्था पर ही लिखा था- इसके दूसरे पक्ष पर मेरी नजर ही नहीं गयी थी कि किस तरह मरीजों के परिजन डाक्टर व नर्सिंग होम की फीस चुकाये बिना भी चले जाते हैं। इस पहलू पर ख्याल तो तब गया जब सेंट्रल एवेन्यू बिडन स्ट्रीट के पास में रिकवरी नर्सिग होम के संचालक डा। एस.अग्रवाल ने अपनी व्यथा फोन पर सुनाई।डा.अग्रवाल का कहना था कि प्राय नर्सिंग होम में मरीज तब ही आते हैं जब स्थिति बिगड़ जाती है। यद्यपि उस वक्त हमको मरीज की हिस्ट्री की जानकारी नहीं होती फिर भी मानवीयता के नाते हम मरीज को भर्ती करने से इन्कार भी नहीं कर सकते। उस वक्त हम अपनी काबिलियत व क्षमता का पूरा प्रयोग करते है जिसका परिणाम प्रायः अच्छा मिलता है। मरीज कुछ दिनों के बाद स्वस्थता के अनुभव के साथ घर लौटने की स्थिति में आ जाता है। कई बार ऐसा भी होता है कि मरीज मरणासन्न स्थिति में ही आता है और बच नहीं पाता। डा. अग्रवाल का आगे कहना था कि इन दोनों स्थितियों में हम लोगों के साथ कुठराघात होता है। अगर मरीज स्वस्थ होकर जाता है तब उसके परिजन बिल चुकाते समय प्रायः बड़े डिस्काउंट पर उतर जाते हैं व दबाव बनाकर अपनी मर्जी के अनुसार ही चुका कर जाते हैं। और मरीज नहीं बचता तब तो हमारी शामत ही आ जाती है। बिल को छोड़िए फिर तो वो गालियां सुननी पड़ती है जो मन को बहुत गहरे चोट कर जाती है। मैंने जब डा. अग्रवाल से पूछा कि जब मरीज को भर्ती किया जाता है तब क्या आप उनसे राशि अग्रिम जमा नहीं लेते। तब उनका जवाब था कि बहुधा जब गंभीर स्थिति में मरीज को लाया जाता है तब साथ आये लोग प्रायः पड़ोसी ही होते हैं तथा कई बार ऐसा भी होता है कि हड़बड़ाहट में घर के आदमी के पास भी उस वक्त उपयुक्त राशि नहीं होती ऐसी स्थिति में हम जमा राशि की तरफ नहीं देखते बल्कि मरीज की विषम स्थिति को सहज बनाने के लिए जुट जाते हैं हमारी यह मानवीयता अक्सर हमारा गुनाह बन जाती है। डा.अग्रवाल की यह वेदना यह बतलाने के लिए क्या काफी नहीं है कि हमारी खामियां कई बार अच्छे लोगों को भी अनैतिक होने के लिए मजबूर कर देती है फिर हम डाक्टर से मानवीयता की अपेक्षा रखने का भी अधिकार खो देते हैं। किसी के हक को मारना क्या गुनाह नहीं है? बिल चुकाने से बचने के लिए हो हल्ला, गुण्डागर्दी के हालात बनाना क्या अनैतिक नहीं है?निवेदन है कि जो लोग जिस क्षेत्र में नैतिक बनकर अपना कर्म कर रहे हैं उनकी नैतिकता को बचाये रखिए। अगर इनकी नैतिकता का हम मजाक उड़ायेंगे या इनके जायज हक पर कुठराघात करेंगे तो ये नैतिक लोग फिर कब तक नैतिक बने रहेंगे और अगर ये भी अनैतिक हमारी वजह से बन गये तब फिर इस कलियुग में बचेगा क्या?इसलिए किसी के भी जायज हक को देने में मत हिचकिचाइए! हां जहां जान बुझकर आपके साथ कोई धोखाधड़ी कर रहा है तब उसके खिलाफ जरूर आवाज उठाइये फिर वो चाहे कोई कितना ही नामी व्यक्ति या संस्थान क्यों न हो? पर बेवजह ऐसे हालात मत बनाइये जिससे कोई इंसान अपनी इंसानियत को छोड़ने के लिए मजबूर हो जाये। इस आलेख में मैंने एक डाक्टर व नर्सिंग होम संचालक की उस पीड़ा को आप पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश की है जो वास्तव में जायज है व विचारणीय है।यद्यपि डाक्टर अग्रवाल से मेरा परिचय सिर्फ फोन के उन पाठक जैसा ही है जो अपने विचार कलम की नोक तक पहुंचाने के लिए फोन से मुझे जताते रहते हैं फिर भी डा. अग्रवाल से फोन पर हुई बातचीत से मुझे ऐसा लगा कि इस प्रसंग को फर्स्ट न्यूज पाठक वर्ग त्वरित पहुंचाया जाना चाहिए, आशा है पाठक वर्ग विषय की गंभीरता को तवज्जो देंगे।

संजय सनम

2 comments:

निर्मला कपिला said...

bhai kuchh ham jese boodhe logon ka bhi dhyan rakha karo shabd kuchh bade karo ya page ka rang badlo aankhon par bahut strain padta hai holi mubarak

अजय कुमार झा said...

sirf ek baat ki sab kuchh samaaj ko vaisaa hee miltaa hai jaisaa samaaj khud hota hai isliye kisi par doshaaropan karnaa koi hal nahin.