मेरे शहर में फ़िर एक हादसा हुआ -एक मासूम का स्कूल की छुट्टी के बाद अपहरण और फ़िर उसकी हत्या करदी गई समूचा शहर गहरे दर्द में डूब गया .पुलिस प्रशासन के खिलाफ लोग सड़क पे उतर आए पर इस आक्रोश से समाधान फ़िर भी नही मिला कलेजे के टुकड़े को खोने का गम वो परिवार कैसे भूल पायेगा .दरिंदगी एक माशुम के चहेरेपर भी नही पिघली --एक बचपन बे मोत मार दिया गया...दर्द इस बात का है की हम उस माशुम के जीवन के लिए कुछ भी नही कर सके .इंसानियत शेतानो के सामने फ़िर असहाय नजर आई,फिरोती का कोई फ़ोन भी नही आया क्योकि पुलिस ने जाल बिछा दिया था ,बदमाश जब अपने उस मकशद में सफल नही हुए तो उन्होंने वो कर दिया जिसको सुन कर संवेदना ख़ुद रो पड़ी क्या पुलिस में जाना और मीडिया में इस केस का जोरदार उठाना उसकी मोत का कारण बन गया ?आखिर क्या किया जाए ....सवाल अत्यन्त गंभीर है इधर कुवा है उधर खाही है आज मेरा शहर इस हादसे को सहकर बहुत दुखी है हमारे हाथ में उस माशुम के जीवन के लिए कुछ भी नही रहा .अब सिर्फ़ प्राथना ही कर सकते है है इश्वर उस माशुम की आत्मा को ममता की छाव देनाऔर माँ के कालजे को पत्थर कर देना नही तो वो नही जी पायेगी कोलकता (हावडा )का वो यश लखोटिया था ब्लोगेर दोस्त उस की आत्मा की शान्ति के लिए जरुर प्राथना करे ..क्योकि संवेदना यह तो कर ही सकती है
संजय सनम
1 comment:
दर्द का एहसास उसे ही होता है जिसे चोट लगी हो ...हमे जागरूक होना सब से ज़ियादा ज़रूरी है ...
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