Saturday, April 16, 2011

फिर तीन सवाल?

(१) फर्स्ट न्यूज साप्ताहिक के पिछले अंक संपादकीय में कुल देवी की पूजा अर्चना के लिए किराये के स्थानों पर भक्ति के नाम पर दौलत और दम्भ का प्रदर्शन करने की बात पर पाठक वर्ग का समर्थन मिला है- पर जो लोग इस प्रदर्शन में मुखिया की पंगत में खड़े थे- उनके दम्भ को चोट भी पहुंची है। यद्धपि मैंने तीन सवाल शीर्षक से दिये उस सम्पादकीय में किसी के नाम का उल्लेख नहीं किया था पर समझदार पाठक तो इशारे को भी पकड़ लेते हैं। मेरा मकसद व्यक्तिगत रूप से किसी की आलोचना करना नहीं था पर समाज के हित में जो उचित हो उसे पाठक वर्ग को समर्पित तो करना था। मुझे दुख इस बात का हुआ कि प्रतिक्रिया में फर्स्ट न्यूज को भविष्य में विज्ञापन न देने के साथ कुछ हल्की बात और सुनने को मिली। मैं तीन सवाल इस बाबत फिर निवेदन करना चाहता हूं। पहला सवाल उन लोगों से है जिन्होंने श्री सुष्वाणी माता जागरण मंडल के नाम से गत १० अप्रैल को पार्क स्ट्रीट में भव्य कार्यक्रम आयोजित किया था। जब राजरहाट में मॉं का प्राण प्रतिष्ठित मंदिर है- तब किराये के स्थानों पर बेवजह का खर्च क्या आपकी भक्ति का भाव है ? या अध्यक्ष, मंत्री, संयोजक के रूप में अपने आपको समाज के सामने अग्रण्य के रूप में प्रस्तुत करने के लिए मंच बनाने का भाव है। अगर आपके मन में भक्ति का ही भाव होता है तो मॉं के भक्तों के बीच में आप भक्त बनकर समाये हुए रहते अर्थात फिर यहां न तो पद होते, न ही अपने नाम का बखान होता। यहां भक्ति के दर्शन की आड़ में आपने अपना प्रदर्शन किया है समाज का आम वर्ग आपकी इस कुटनीति को अंदर से सब समझता है। अपने नाम के प्रदर्शन के लिए मंच बहुत है- कम से कम मॉं के इस गरिमामय मंच पर अपने आपको बड़ा दिखाने की जुगत तो मत भिड़ाइये।
भक्ति के इस प्रदर्शन में समाज के लाखों रुपए खर्च हुए होंगे समाज का आम आदमी यह जानना चाहता है कि आप लोगों ने कितने रुपए उगाहे, कितने लगाये और कितने बचाये? यह जिज्ञासा सवाल बनकर सुनने को मिल रही है। अपने दिखावे के लिए आप लाखों रुपए होम करवा सकते हैं - पर अगर कोई जरूरतमंद आपके पास आ जाये... तब आपका मन कितने तक की उसकी सहायता करने की गवाही देता है?
रुपयों की बर्बादी किस तरह हुई है.... सूत्रों से मिली जानकारी यह कहती है कि शिवपुर से जो बस भक्तों को लेकर आने के लिए की गई थी उसमें सिर्फ तीन महिलाएं थी अर्थात तीन महिलाओं पर करीब चार हजार का खर्च ..... क्या यह उन दान दाताओं के धन के साथ मजाक नहीं है? जो आपने उनसे भक्ति भाव के नाम पर उगाहे थे।
पाठक इस बात को भी जानते हैं इस प्रकार की योजना बनाने वाले मुखियाओं की कतार धन उगाहने में कुशल है - व अपना कुछ अंश देकर लोगों की दौलत पर अपना नाम फटाने की कला जानते है- कुछ अन्य लोगों के नाम देकर कार्यकर्ता की सेवा लेना भी जानती है-कुल मिलाकर इसे कुटिल राजनीति ही कहा जा सकता है जो माता की महिमा के नाम पर अपने आपको महिमा मंडित करने का प्रयास करती है।
अब एक बात उन लोगों को समर्पित करना चाहता हूं जिनके मन में अपनी दौलत के प्रति इतना अंहकार है कि उनकी हां में अगर कोई हां न मिलाये तो वे धन से अपना समर्थन अमेरिका की तर्ज पर बंद करने की धमकी देते हैं। उन श्रीमन जनों से मेरा निवेदन है कि फर्स्ट न्यूज मेरे दम पर नहीं चलता और न ही आपका दम व दम्भ उसे रोक सकता है। जब तक देवी मां चाहेगी तब तक मेरी कलम अविराम ही चलेगी। आपके विज्ञापन बंद करने की धमकी न तो मेरी कलम को, न ही इसके स्त्रोत को रोक सकते है।
फर्स्ट न्यूज का यह पेपर आपके लिए कागज का टुकड़ा हो सकता है पर मेरे लिए तो यह पूजा है - और इस पूजा के लिए साधन-देवी मां खुद जुटा देती है। नये-नये भक्त सच का साथ देने के लिए खुद आ जाते है- इसलिए अपने मन से यह भ्रम निकाल दीजिए कि आप के अधिकार में कुछ है। हम सब को चलाने वाली वो अदृश्य शक्ति ही है- पर हमारा मति भ्रम है कि हम स्वयं को ही सृष्टा मान लेते है।
ईश्वर आपको सद्बुद्धि दे, मैं यह मंगल कामना करता हूं। फर्स्ट न्यूज को विज्ञापन देने की आपको आवश्यकता नहीं है- मैं आत्मीय भाव से जो आपको फोन इस हेतु करता था- मेरा वो फोन आपके पास अब नहीं आयेगा.... और देवी मां के आशीर्वाद से फर्स्ट न्यूज के प्रकाशन में अर्थाभाव भी नहीं आयेगा। जब तक वो (इष्ट देवी) चाहेगी ये कलम अपना धर्म निभाती रहेगी।
(२) दूसरा सवाल उन दानदाताओं से है कि ईश्वर ने आपको दौलत दी है तो कृपया उसको उन हाथों में मत सौपिये जो भक्ति का मुखौटा पहनकर आते है और स्टेज शो जैसे अपना प्रदर्शन आपकी दौलत के बल पर कर जाते हैं।
समाज में अपनी पहचान सार्वजनिक रूप से करने की इच्छा हो सकती है-पर मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि या उद्घाटनकर्ता बन कर ही यह इच्छा पूर्ण हो यह जरूरी नहीं और फिर यह भी समझे कि आयोजन करने वालों की असली मनः स्थिति क्या है?
असहाय, दुर्बल, जरुरतमंद लोगों तक अपनी दौलत की शक्ति पहुंचाकर उनके दिलों में अपना नाम लिखवाइये अर्थात मसीहा बनिये...। तब लक्ष्मी खुद धन्य हो जायेगी-और आपके मन को असीम शांति मिलेगी।
(३) तीसरा सवाल समाज के आम वर्ग से.... जिसका मुझे सबसे अधिक समर्थन मिलता है और मेरे मन में समाज के आमवर्ग का ही हित सर्वोपरी रहता है।
मैं समाज के आम वर्ग से यह जानना चाहता हूं कि भक्ति के नाम पर फिजुल के प्रर्दशन को क्या आप समर्थन देते हैं? क्या यह जारी रखेंगे? देवी मां का प्राण प्रतिष्ठित मंदिर जब राजारहाट में है तो फिर पूजा अर्चना के लिए किराये के स्थानों पर मां की फोटो को लाना फिर ले जाना क्या आपको नहीं अखरता? अगर हां तो फिर वहां जाना क्या आपको उचित लगता है? ....उचित/अनुचित का ख्याल न करके भंडारे के नाम पर भीड़ जमा हो जाना क्या आपके मन को नहीं कचोटता? मां के लिए मन में भक्ति-आस्था की जगह आप सुविधा क्यों चाहते हैं? क्या आपको यह नहीं लगता कि मॉं के प्राण प्रतिष्ठित स्थान की हम जाने-अनजाने अवहेलना कर जाते है और भक्ति भाव का दिखाऊ व बिकाऊ प्रदर्शन करने वालों को हम समर्थन दे जाते है... जो कि उचित नहीं है...।
भविष्य आपका उचित फैसला चाहता है।
अंत में मैं यह निवेदन करना चाहता हूं कि मेरे मन में किसी के प्रति व्यक्तिशः मनोमालिन्य नहीं है.. समाज के हित को देखते हुए मुझे तो उचित जान पड़ा उसको निवेदित किया है-अगर किसी दिल को चोट पहुंची है तो मुझे क्षमा करे- क्योंकि मेरा मकसद किसी व्यक्ति विशेष पर प्रहार करना नहीं- मैं विसंगतियों पर चोट करना चाहता हूं।
दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां मुझे बरबस याद हो आई है....
मेरा मकसद सिर्फ हंगामा खड़ा करना नहीं,
मैं तो चाहता हूं कि सूरत बदलनी चाहिए।

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