Friday, January 21, 2011

वो भूकम्प था या बर्फवारी थी





घोटाले क्रेस में सेन्सेक्स धराशायी

-संजय सनम

चाहे भूकम्प के झटके कहिये, हवा के फटके कहिये या फिर घोटाले के एक विमान की स्टॉक एक्सचेन्ज बिल्डिंग से टकराने-सी टक्कर कहिये या फिर शीत के मौसम में सेन्सेक्स पर भारी बर्फवारी की खबर कहिये... शेयर बाजार सेन्सेक्स के हालातों पर आप इनमें से कोई भी जुमला कह सकते हैं- करतूत घोटालों की और मार शेयर बाजार सेन्सेक्स सह रहा है। इक्कीस हजारी सेन्सेक्स बिल्कुल इक्कीस वर्षीय किसी हसीना की तरह अपनी बलखाती चाल से करोड़ों दिलों को इतना सकून दे रहा था कि लोग पीठ पीछे महंगाई के चाबुक की चोट का दर्द भी इसे देख कर भूल से गये थे- पर जब इस हसीना पर घोटाला रूपी दुष्कर्म का प्रभाव पड़ा और वो ऐसे चलने लगी जैसे अचानक ही उसके पांव भारी हो गये तब करोड़ों निवेशकों का सकू न खत्म होने लगा...और महंगाई के चाबुक की चोट के जख्म हरे होने लगे। ये जख्म लगातार हरे हुये जा रहे हैं और निवेशक अपने आपको एक बार फिर इसलिए कोस रहे हैं कि उन्होंने सरकार के ग्राफ पर विश्वास क्यों किया? जी.डी.पी. ग्रोथ के आंकड़ों के छलावे में क्यों आये?

आखिर यहां तो घोटाले की ग्रोथ विश्वसनीय होती है-क्योंकि जी.डी.पी. ग्रोथ से अधिक तो सरकार में काम करने वालों की क्रियाविधि इसमें रहती है...और इस ग्रोथ के आंकड़े जब आते हैं तो सेन्सेक्स का सेन्स ऑफ ह्युमर भी खत्म हो जाता है। काश सेन्सेक्स घोटालों के ग्राफ से तेजी पकड़ता तो अब तक इन्डेक्स इक्कीस हजारी नहीं इक्कीस करोड़ी हो जाता पर यह तो मुद्रास्फीति के आंकड़े, जी.डी.पी. वृद्धि दर पर चलता है इसलिये थोड़ा सा तेज चल कर फिर ऐसे गिरता है-जैसे कई सालों से कुछ खाया-पिया ही नहीं हो।

चूंकि इस देश से घोटाले नहीं मिट सकते- क्योंकि अब यह घोटालेबाजों का ही हो गया है-इसलिये घोटाले मिटाने का सुझाव नहीं दिया जा सकता पर एक सुझाव वित्तमंत्री जी को दिया जा सकता है- कि शेयर बाजार का सूचकांक घोटालों की रकमों के ग्राफ से जोड़ दे- फिर इस बाजार में कभी मंदी नहीं आयेगी और निवेशकों की जेबों में तंगी नहीं आयेगी।

कृपया जी.डी.पी. ग्रोथ आर्थिक विकास पर नहीं घोटालों के विकास से रेखांकित करें...फिर चाहे टेक्स जितना चाहे लगा लें पर घोटालों की पुरी खेप का रुपया इन्डेक्स ग्रोथ के नाम करवा दें।

एक बात और- घोटालों का काला धन भारतीय बैंकों में रखने का प्रावधान किया जाये-जिससे भारतीय बैंक ों में धन की तरलता रहेगी-तथा यह काला धन ७ वर्षों के लाकिंग पीरियड में किया जाये- इसका ब्याज बैंकों को नहीं देना होगा तथा ७ वर्षों के लाकिंग पीरियड में बैंक इसका अन्य उपयोग कर ब्याज कमा सकेगी- इस तरह का प्रावधान करने से बैंक इन्डेक्स में जबरदस्त तेजी होगी जो कि शेयर बाजार के सेन्सेक्स के लिये जरूरी होगी। वित्तमंत्री जी को काले धन का खुलासा करने वालों को पूर्ण रूप से कर में छूट देनी होगी- वो काला धन ७ वर्ष के लिये बैंकों में लाकिंग पीरियड में रखने का प्रावधान करना होगा तथा बैंकों की उस धन द्वारा ब्याज की आय पर सरकार टेक्स प्रावधान कर सकती है।

सरकार को चाहिये कि या तो वो घोटाले खत्म करे पर यह नहीं हो सकता क्योंकि ऐसा लगता है कि बिना घोटाले के सरकार ही नहीं चल सकती- ये घोटाले शायद सरकार के निजी आर्थिक जगत के लिये टॉनिक का काम करते हैं। इसलिये सरकार को घोटाले के धन को कम से कम विदेशी बैंंकों में जाने से रोकना चाहिए- यह तभी हो सकता है जब काले धन पर सरकार उदारता पूर्वक काले धन के लिये विशेष आयकर धारा का निर्माण कर घोटालेबाजों को आयकर में राहत देकर भारतीय बैंकों में काले धन को निवेश करने के लिये प्रोत्साहित करें।

अगर ऐसा हुआ तो शेयर बाजार सेन्सेक्स आसमानी ऊंचाई पर होगा- करोड़ों निवेशकों का मन भरा होगा- तब फिर महंगाई भी कुछ नहीं बिगाड़ सके गी-और इनका ध्यान बंटा नहीं सकेगी। जहांं तक सवाल गरीब वर्ग का है...वो तो राजनीति के संरक्षण के लिये जान-बूझकर उसे गरीब ही रखा गया है-आप गरीबी राजनैतिक मजबूरी की वजह से मिटा नहीं सकते... ये महंगाई गरीबों को ही मिटा देगी और सरकार के ऊपर सीधे रूप से इल्जाम भी नहीं आयेगा- तब शहींदों के सपनों का भारत गरीबी नहीं गरीब मुक्त कहा जायेगा।

इसलिये वित्तमंत्री जी अपने आगामी बजट में मुद्रस्फीति, जी.डी.पी. ग्रोथ ये सब रहस्यबोधक शब्द पूर्ण रूप से हटा दीजिए-अपना बजट घोटालों की ग्रोथ से बना दीजिए-तब आपके बजट को ढोने वाली अटेची भी धन्य होगी- क्योंकि वो वजनदार होगी... कंगाल नहीं होगी।

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