Friday, May 8, 2009

"सुहाग सेज सजाने की तैयारी'

जी हां.... सत्ता सुंदरी को पाने के लिए स्वयंवर का चौथा चरण पूरा हो गया है बस अब सिर्फ एक और चरण ही बाकी रह गया है। स्वयंवर की यह परीक्षा की घड़ी खत्म होने से पहले राजनीति के नौजवान बुढों में सत्ता सुंदरी के साथ सुहाग सेज पर जाने की तमन्ना इतनी जोर पकड़ती दिख रही है कि हर कोई अपने-अपने रूप से सुहाग सेज सजाने लग गया है। राजनीति की इस सत्ता सुंदरी का यह दुर्भाग्य है कि उसको वरण करने के लिए कतार में सिर्फ बुढे ही बुढ़े खड़े हैं... वो भी अपने आपको कोस रही है कि ११० करोड़ के इस देश में चिकना-चुपड़ा कोई जवान उसको बांहों में भरने के लिए नहीं मिल रहा। इस बार इन बुढों के हाथ से ही घूंघट उठवाना पड़ता है और फिर बात घूंघट उठाने से आगे ही कहां बढ़ती है? ये तो फिर गोद में सो जाते हैं.... इतना ही नहीं... इनमें तो अपनी चीज को जतन से रखने का सलीका भी नहीं है अपना भाग बचाने के लिए अपने ही जैसे कुछ और बुढों को भी मुंह मारने के लिए ले आते हैं.. दरअसल सत्ता को इन लोगों ने वेश्या से भी बदतर बना रखा है जहां आकर मुंह मारकर निढाल हो जाते हैं। सत्ता की ये सुंदरी भी अब इन आउठ डेटेड चेहरों से ऊब गयी है... पर ये लोग फिर भी नहीं समझते अगर सवाल किया जाये तो इनका जवाब यह भी हो सकता है कि बंदर अगर बुढा हो जाये तो गुलाटी मारना कब भूलता है?सच कहा जाये तो राजनीति के इस दंगल में कुर्सी के लिए सब लोग गुलाटी ही मारते दिख रहे हैं सत्ता सुंदरी का यह मलाल कि आखिर कब तक बुढ़ों के द्वारा ही उसका घूंघट उठाया जायेगा? इसे एक सजी धजी दुल्हन की व्यथा चाहे न समझे पर कोठेे में बैठी तवायफ भी अपने ग्राहक को बांका जवान ही तो चाहती है। क्या राजनीति में सन्यास देने का कानून नहीं बनना चाहिए। मैंने यहां लेने शब्द का प्रयोग इसलिए नहीं किया है क्योंकि यहां सन्यास स्वतः लेना मुश्किल होता है। सोमनाथ दा जैसे अपवाद कहां मिलते हैं? यहां तो जबरन विदाई देनी पड़ती है। हमारी भारतीय संस्कृति में बुजुर्गों का अनुभव सीखा जाता है सम्मान के साथ उनको विश्राम दिया जाता है उनकी सेवा की जाती है। पर राजनीति के ये लोग बुजुर्ग की इस गरिमा को खो चुके हैं और ऐसे बुढ़े बन गये हैं जिनकी अतृप्त आकांक्षा इस कदर मचल रही है कि इन्हें सत्ता सुंदरी के अलावा और कुछ दिखाई नहीं देता। अब बतलाइये की राजनीति के कमरे में सत्ता सुंदरी की सुहाग सेज चाहे किसी युवा की ही चाहत क्यों न करें... पर जब तक कोई कानून एक निश्चित उम्र के बाद चुनाव न लड़ सकने या महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों पर आसीन होने से रोकने का नहीं बन जाता तब तक इन बुढ़ों के हाथ में ही सरकार रहेगी और देश भी तब तक बुढ़ा ही रहेगा। संजय सनम

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