Monday, May 4, 2009

ऐसा क्यो होता है ?

कितने बेशरम है ये

जो जनता के सामने

जुबान से नंगे होकर लड़ते है

पर दिल्ली की कुर्सी पर

काबिज होने के लिए

फ़िर गले मिल लेते है

तब ऐसा लगता है कि

वो जनता के वोट को

मजाक बनाकर

जबरन कुर्सी का

अधिग्रहण

कर लेते है

कुर्सी के इस तंत्र को

फ़िर जनतंत्र क्यो कहा जाता है ?

जमीर के कपड़े

उतारने वालो के लिए

जनता के वोट को

तब क्यो ?

नंगा किया जाता है

संजय सनम

3 comments:

श्यामल सुमन said...

शेष हैं भूखे लोक बस नहीं बचा है तंत्र।
मिला रहे दुश्मन गले कुर्सी का षडयंत्र।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Asha Joglekar said...

shee hai. log hee to aksar bewakoof bante rehate hain.

RAJNISH PARIHAR said...

सही है ..अपने कुछ भी कहें चुनाव के बाद ये सब एक हो जायेंगे..और हम हमेशा की भांति ठगे जायेंगे..,,जी यही लोकतंत्र है..