Saturday, March 6, 2010

सावधान! शेर की खाल में भेड़िये घूम रहे हैं

बाबा और स्वामी नित्यानन्द का असली चेहरा सामने आ जाने के बाद एक बार फिर संत महात्माओं की आध्यात्मिक दूनिया संदेह के घेरे में आ गयी है। संत का चोला पहनकर भक्तों को बरगलाने वाले न जाने ऐसे और कितने चेहरे होंगे जिनका अंदर का रूप वहशी भेड़ियों जैसा होगा। ५०० कालगर्ल का रैकेट चलाने वाले इच्छाधारी बाबा अपने नाम के अनुरूप ही निकला अर्थात अपनी इच्छा से बाबा बनकर भक्तों के बीच में आता था बाद में अन्य परिधान और विलासिता का हर स्वाद चखता था। इस देश की भोली-भाली जनता ही नहीं अपितु पढ़े लिखे लोग भी अब तक संत व उपदेशक के बीच के अंतर को नहीं समझ पाये हैं। उपदेशक तो कोई भी हो सकता है अर्थात शास्त्रों का ज्ञान और वक्तुत्व कला जिसके पास हो वो हर कोई उपदेश दे सकता है पर संत तो उसे कहते हैं जो उपदेश वो देता है उसको वो अपने जीवन दर्शन में स्वंय जीता है। इस देश में उपदेशकों की बाढ़ आई हुई है पर सच्चे संतों के दर्शन अब दुर्लभ से हो रहे हैं।वैभव व भौतिक सुख समृद्धि का जीवन जीने वाले संत वास्तविक आध्यात्मिक शिखर को भला कैसे छू सकते है? काजल की कोठरी में अगर कोई रहे और काला न हो क्या यह मुमकिन है? अपवाद स्वरूप कुछेक उदाहरण ऐसे मिल सकते हैं जो यह बताते है कि इन कसौटियों पर कुछ महात्माओं ने अपने आपको कसा तथा निर्विकार रहे पर ऐसे संत के दर्शन कहां सुलभ है? संतों की दुनिया आश्रम, मठों, भवनों की दौड़ में लगी हुई है, सुख साधनोंें को जुटाया जा रहा है बाहरी रूप को मैकअप से मोहक बनाया जा रहा है। आत्मा का ज्ञान देने वाले स्वयं लक्ष्मी पुत्रों की जय बोलते नजर आ रहे है... क्योंकि दौलत का जायका उनको इस कदर लग चुका है कि आध्यात्म की कढी फिकी लग रही है। भीड़ इकट्ठी करने के तरह-तरह के हथकंडे किये जा रहे हैं। गरीब जनता की गरीबी को भुनाया जा रहा है। बेचारे गरीब लोग एक गिलास एक थाली और एक कपड़े व भरपेट भोजन के लिए कोसो-कोस पैदल चलकर आते है तथा भगदड़ रूपी दुर्घटना में दबकर मर जाते हैं।वाह! कृपालु महाराज... अच्छी कृपा दिखाई... पीड़ित लोगों को भगवान भरोसे छोड़कर दफा हो गये... प्रतापगढ़ में इस भंडारे के दौरान हुई दुर्घटना में भंडारे के आयोजक के रूप में आप जिम्मेदार थे इतने लोगों की मौत व उनके परिजनों की चीत्कार के इस मातमी माहौल में आप अपना सत दिखाते... उन भक्तों के जख्मों पर प्यार-धीरज की मरहम लगाते.. कानून का डर आपको इतना लगा कि मृतात्माओं की शांति के लिए शांति पाठ करने की भी हिम्मत न जुटा सके।क्या कोई संत अपने भक्तों को रोते-चिखते-चिल्लाते देखकर गुपचुप पलायन कर सकता है? दरअसल सच्चा संत महात्मा तो पीड़ित जनता को यूं छोड़कर नहीं जाते अब आप क्या है?... शायद बतलाने की जरूरत नहीं बचती।दरअसल संत तो फक्कड़ बाबा, फकीरों को ही शोभायमान होता है जहां जगह मिली रह लिये जहां जो भी खाने को मिला वो भगवान का प्रसाद स्वरूप समझ कर खा लिये उन्हेंं न तो आलिशान भवन चाहिए न ही मालपुए का भोजन। वो रहते हैं हर क्षण अपने आराध्य में लीन... पर हमारे यहां अब ऐसे संत गिनती के ही रह गये। अधिकांश तो कारपोरेट संत करोड़ों की संपदा के मालिक हो गये हैं। हरिद्वार में संत समुदाय में ८ सदस्यों की एक कमेटी बनायी है जो अपने समाज में छुपे छद्मवेशी, पाखंडी, ढ़ोगियों की पहचान करेगी.. यह निर्णय वास्तव में स्वागतयोग्य हुआ है आशा है जनता की भक्ति का और अधिक मजाक अब नहीं उड़ाया जायेगा तथा संत का उपरी चोला पहनकर करोड़ों का माल हजम करने वाला हर चेहरा बेनकाब होगा.. इस समाज में छंटनी की प्रक्रिया अत्यंत जरूरी है अन्यथा पूरा समाज संदेह की नजर में ही रहेगा।प्रशासन व सरकार की भी जवाबदेही बनती है कि कालिख पूते चेहरों का सच सामने आने के बाद ऐसी कठोर कार्रवाई करें जिससे दूसरे छद्मवेशी स्वयं अपना चोला उतारकर संत समाज से पलायन कर जायें। ऐसे कठोर कानून बनने चाहिए जिससे कोई भी संत अपने आयोजन में दुर्घटना घटने के बाद अपने आपको गुपचुप भगाने की कोशिश न कर सके। भीड़-भाड़ के आयोजन बिना प्रशासन की जानकारी/अनुमति के बिना दण्डनीय अपराध होना चाहिए।

No comments: