Wednesday, July 27, 2011
बंगाल का सूरज
बंगाल के
आकाश में...
एक नया सूर्य
बंगाल के इतिहास में...
रश्मियां
यह
जता रही है
कि
अंधेरों की धूंध
अब खुद
जाना चाह रही है
अर्थात
रोशनी विकास की
एक नये आयाम की
नजर आ रही है
क्योंकि
उगता सूरज
अपना
रुप दिखा रहा है
और
एक नया
आलोक
अपनी चाल में
बना रहा है
अर्थात
बंगाल
का
स्वर्णिम काल
अब
आ रहा है।
-संजय सनम
बंगाल का सूरज
बंगाल के
आकाश में...
एक नया सूर्य
बंगाल के इतिहास में...
रश्मियां
यह
जता रही है
कि
अंधेरों की धूंध
अब खुद
जाना चाह रही है
अर्थात
रोशनी विकास की
एक नये आयाम की
नजर आ रही है
क्योंकि
उगता सूरज
अपना
रुप दिखा रहा है
और
एक नया
आलोक
अपनी चाल में
बना रहा है
अर्थात
बंगाल
का
स्वर्णिम काल
अब
आ रहा है।
-संजय सनम
""सलाम बांग्ला-सलाम ममता''
पर गुरुवार को बिग्रेड ने न सिर्फ अपने नाम की गरिमा दिखाई वरन् आम जनता के मन की उस पुरानी परिभाषा को भी बदल दिया अगर मुखिया नेक, ईमानदार, शालीन, अनुशासित हो तो फिर उसके कार्यकर्ताओं को भी ऐसा ही बनना होता है- क्योंकि उनकों जो बार-बार बताया जाये फिर आचरण में वो आता ही है। शायद इसलिये गुरुवार को बिग्रेड का नजारा अभूतपूर्व था। वास्तव में यह असली ब्रिगेड थी- क्योंकि यहां किराये की भीड़ नहीं थी- अपने दिल की आवाज पर दीवानगी के अहसास को लेकर लाखों लोग आये थे.... इस भीड़ ने यह बताया था कि अगर कोई जनता के लिए र्ईमानदारी से काम करता है तो जनता उसके लिए सैकड़ों मिलों से सफर करके बारिश में भींगकर उसके बुलावे पर हाजिर हो जाती है।
ब्रिगेड की यह रैली तमाशा नहीं थी बल्कि आंखों को मुग्ध करने वाला नजारा थी। ममता बनर्जी राजनीति और नेताओं के लिए सीखने वाला पाठ बन रही है- कि वास्तव में नेता, सरकार, प्रशासन कैसा होना चाहिए?
महानगर में शायद पहली बार जनसमुद्र का इतना शैलाब देखा गया था और बावजूद इसके सड़के जाम नहीं थी- सड़क परिवहन अन्य दिनों की तुलना में भी बेहतर था- अर्थात आम जनता को कहीं परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा।
ममता की दूरदर्शिता की जितनी तारीफ की जाये वो कम लगेगी क्योंकि भीड़ को नियंत्रित करने व शालीनता से गंतव्य तक जाने तथा प्रशासन को चुस्त रखने व कार्यकर्ताओं से सही रूप से काम लेने अर्थात सभी के तरफ से व्यवस्था को जीवंत रूप से बनाये रखने की अद्भुत शैली ममता जी ने दिखलाई है। एक कहावत याद आ रही है... उदय होता सूर्य अपना तेज बता देता है... ममता की कार्यशैली इस कहावत को चरितार्थ कर रही है। बंगाल में ममता के रूप में एक नया सूर्य प्रकाश की यात्रा में निकल चुका है... अर्थात अंधेरों को अब जाना ही होगा- बंगाल के स्वर्णिम युग की शुरुआत हो चुकी है।
""सलाम बांग्ला-सलाम ममता''
सरकार इसे कहते हैं
आदर्श बन रही है ममता
बंगाल के स्वर्णिम काल की शुरूआत
भीड़ तमाशा नहीं -नजारा थी
प्रशासन था जिंदा-सड़के नहीं थी जाम
Saturday, July 16, 2011
चुटकी
राहुल जवाब दे!
Saturday, July 9, 2011
क्या वो बागवां गुनहगार नहीं है?
Saturday, July 2, 2011
""सधे कदमों से चल रहे है अन्ना''
कभी-कभी बहुत तेज चलना और लक्ष्य को सामने खुद आता देखकर अति आत्मविश्वास के साथ छलांग लगाना बहुत खतरनाक होता है। बाबा रामदेव का प्रसंग अन्ना हजारे के लिए सबक बन गया है- और वे इसको बहुत गंभीरता के साथ लेकर उस पर सही अमल करते हुए दिख रहे हैं।
अन्ना और बाबा रामदेव का लक्ष्य एक ही है-पर शैली काफी अलग है, इन दोनों का व्यक्तित्व और जनता तक पहुंचने का तरीका भी अलग है। पर दोनों में एक फर्क है... बाबा को नया-नया प्रसिद्धी का स्वाद मिला है और सियासी गोटियों के चक्रव्यूह में घुसकर निकलने की जानकारी नहीं है। बाबा रामदेव चूंकि योग सिखाते हैं-इसलिए बोलने की आदत अधिक है अधिक बोलना कई बार गले की घंटी बन जाता है- नाप-तौल कर बोलने वाले की बात का वजन होता है क्योंकि लोग उसके व्यक्तव्य को गंभीरता से लेते है-इस प्रकार यहां भी अन्ना, बाबा रामदेव से अलग नजर आते हैं। एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल है टीम का-यहां अन्ना बाबा रामदेव से खासे आगे हैं क्योंकि अन्ना के पास जो तिकड़ी भूषण,बेदी, केजरीवाल की है वो सरकार को बोल्ड करने का हुनर रखती है।
अन्ना के कदम हर राजनीतिक दल के दरवाजे तक जा रहे है-और वे अपना पक्ष समझाकर उनकी मंशा को सीधे जान रहे है- अब अगर भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए सशक्त लोकपाल का विरोध किस अंदाज में कोई करता है-यह राज अन्ना की टीम का जानना आगे की रणनीति में इनके लिए अस्त्र के रूप में काम करेगा।
एक खास बात यह है कि भीड़ में बोलना व अकेले में बोलने में फर्क होता है। राजनैतिक दलों के लिए अकेले में अन्ना की टीम के सामने मजबूत लोकपाल का विरोध करना मुश्किल बात होगी।
लोहा ही लोहे को काटता है-बिल्कुल इसी तर्ज पर चल रहे है ""अन्ना'' और सियासत खुद अपने ही बनाये चक्रव्यूह में फंस जाये तो कोई आश्चर्य नहीं। सियासत गला फाड़ कर कह रही है कि संसद सर्वोच्च है क्योंकि यहां जनता के चुने प्रतिनिधि फैसला लेते है... ये लोग जड़ को भूलकर पत्तों को सर्वोच्च बतला रहे है- जड़ तो जनता है-इस लिहाज से सर्वोच्च जनता है....और जनता का विश्वास सियासत से जब उठ गया है तब वो सशक्त लोकपाल चाहती है। अन्ना और उनकी टीम को इस देश की जनता का समर्थन मिल रहा है तब भी सियासत लोकपाल के मुद्दे पर सकपका रही है।
अंधेरी रात के बाद भोर आती है... प्रकृति के इस नियम को कौन रोक सकता है? भारत की जनता सियासत में उजास चाहती है... सियासत को अपना कर्म, चाल-चलन बदलना होगा- अन्यथा वक्त आने पर जनता बदल देगी।